Posted On: 30-08-2018

चक्रवर्ती सम्राट अशोक

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चक्रवर्ती सम्राट अशोक

आदर्शवादी तथा बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न, मानव सभ्यता का अग्रदूत तथा प्राचीन भारतीय इतिहास का दैदिप्त्यमान सितारा अशोक एक महान सम्राट था। सभी इतिहासकारों की दृष्टी से अशोक का शासनकाल स्वर्णिम काल कहलाता है।
अशोक बिंदुसार का पुत्र था , बौद्ध ग्रन्थ दीपवंश में बिन्दुसार की 16 पत्नियों एवं 101 पुत्रों का जिक्र है। अशोक की माता का नाम शुभदाग्री था। बिंदुसार ने अपने सभी पुत्रों को बेहतरीन शिक्षा देने की व्यवस्था की थी। लेकिन उन सबमें अशोक सबसे श्रेष्ठ और बुद्धिमान था। प्रशासनिक शिक्षा के लिये बिंदुसार ने अशोक को उज्जैन का सुबेदार नियुक्त किया था। अशोक बचपन से अत्यन्त मेघावी था। अशोक की गणना विश्व के महानतम् शासकों में की जाती है।
सुशीम बिंदुसार का सबसे बड़ा पुत्र था लेकिन बिंदुसार के शासनकाल में ही तक्षशीला में हुए विद्रोह को दबाने में वह अक्षम रहा। बिंदुसार ने अशोक को तक्षशीला भेजा। अशोक वहाँ शांति स्थापित करने में सफल रहा। अशोक अपने पिता के शासनकाल में ही प्रशासनिक कार्यों में सफल हो गया था। जब 273 ई.पू. में बिंदुसार बीमार हुआ तब अशोक उज्जैन का सुबेदार था।
पिता की बिमारी की खब़र सुनते ही वह पाटलीपुत्र के लिये रवाना हुआ लेकिन रास्ते में ही अशोक को पिता बिंदुसार के मृत्यु की ख़बर मिली। पाटलीपुत्र पहुँचकर उसे उन लोगों का सामना करना पड़ा जो उसे पसंद नही करते थे। युवराज न होने के कारण अशोक उत्तराधिकार से भी बहुत दूर था। लेकिन अशोक की योग्यता इस बात का संकेत करती थी कि अशोक ही बेहतर उत्तराधिकारी था। बहुत से लोग अशोक के पक्ष में भी थे। अतः उनकी मदद से एंव चार साल के कड़े संघर्ष के बाद 269 ई.पू. में अशोक का औपचारिक रूप से राज्यभिषेक हुआ।
अशोक ने प्रशाश्कीय क्षेत्र में जिस त्याग, दानशीलता तथा उदारता का परिचय दिया एवं मानव को नैतिक स्तर उठाने की प्रेरणा दी वो विश्व इतिहास में कहीं और देखने को नही मिलती है। अशोक ने शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिये अनेक सुधार किये और अनेक धर्म-महापात्रों की नियुक्ति की। अशोक अपनी जनता को अपनी संतान की तरह मानता था। उसने जनहित के लिये प्रांतीय राजुकों को नियुक्त किया। अशोक के छठे लेख से ये स्पष्ट हो जाता है कि वो कुशल प्रशासक था। उसका संदेश था –
प्रत्येक समय मैं चाहे भोजन कर रहा हूँ या शयनागार में हूँ, प्रतिवेदक प्रजा की स्थिति से मुझे अवगत करें। मैं सर्वत्र कार्य करूंगा प्रजा हित मेरा कर्तव्य है और इसका मूल उद्योग तथा कार्य तत्परता है।
अशोक की योग्यता का ही परिणाम था कि उसने 40 वर्षों तक कुशलता से शासन किया, यही वजह है कि सदियों बाद; आज भी लोग अशोक को एक अच्छे शाशक के रूप में याद करते हैं।
अशोक युद्ध के लिये इतना प्रसिद्ध नही हुआ जितना एक धम्म विजेता के रूप में प्रसिद्ध हुआ। वह न केवल मानव वरन सम्पूर्ण प्राणी जगत के प्रति उदारता का दृष्टीकोण रखता था। इसी कारण उसने पशु पक्षियों के वध पर प्रतिबंध लगा दिया था। अशोक ने लोकहित के लिये छायादार वृक्ष, धर्मशालाएं बनवाई तथा कुएं भी खुदवाये। उसने मनुष्यों व पशुओं के लिये उपयोगी औषधियों एवं औषधालयों की व्यवस्था की थी।
अपने साम्राज्य की सीमाओं की सुरक्षा तथा दक्षिण भारत से व्यापार की इच्छा हेतु अशोक ने 261 ई.पू. में कलिंग पर आक्रमण किया। युद्ध बहुत भीषण हुआ। इस युद्ध में अशोक को विजय हासिल हुई। जिसका विवरण अशोक के तेरहवें शिलालेख में अंकित है। विजयी होने के बावजूद अशोक इस जीत से खुश नही हुआ क्योंकि इस युद्ध में नरसंहार का ऐसा तांडव हुआ जिसे देखकर अशोक का मन द्रविभूत हो गया।
युद्ध की भीषणता का दिलो-दिमाग पर ऐसा असर हुआ कि अशोक ने युद्ध की नीति का सदैव के लिये त्याग कर दिया। उसने दिग्विजय की जगह धम्म विजय को अपनाया। उसने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया कि कलिंग की जनता के साथ पुत्रवत् व्यवहार किया जाये तथा सभी के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार हो। उसने अपने आदेश को शिलालेख पर लिखवाया। ये आदेश धौली व जोगदा शिलालेखों पर अंकित है। कलिंग के युद्ध के बाद सम्राट अशोक के व्यवहार में अद्भुत परिवर्तन हुआ और कलिंग युद्ध उसका अंतिम सैन्य अभियान था। अशोक की इस शान्ति प्रिय निती ने उसे अमर बना दिया।
अशोक ने अपने शासन काल में बंदियों की स्थिति में भी सुधार किये। उसने वर्ष में एक बार कैदियों को मुक्त करने की प्रथा का प्रारंभ किया था। अशोक ने राज्य का स्थाई रूप से दौरा करने के लिये व्युष्ट नामक अधिकारी नियुक्त किये थे। कलिंग विजय के पश्चात अशोक का साम्राज्य विस्तार बंगाल की खाड़ी तक हो गया था। नेपाल तथा कश्मीर भी मगध राज्य में थे। दक्षिण में पन्नार नदी तक साम्राज्य विस्तृत था। उत्तर पश्चिम में अफगानिस्तान व बलूचिस्तान भी अशोक के साम्राज्य का हिस्सा था।