भारत के पहले और विश्व के 138 वें अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा का जन्म 13 जनवरी 1949 को पंजाब के पटियाला में हुआ था। राकेश शर्मा एक अच्छे मनुष्य थे
राकेश बचपन से ही विज्ञान में काफी रूचि रखते थें। बिगड़ी चीजों को बनाना और इलेक्ट्रॉनिक चीजों पर बारीकी से नजर रखना उनकी आदत थी।
राकेश जब बड़े हुए तो आसमान में उड़ते हवाई जहाज को तब तक देखा करते थे जब तक वह उनकी आंखो से ओझल ना हो जाए। जल्द ही राकेश के मन में आसमान में उड़ने की तमन्ना जाग गई। फिर क्या, वह बस उसी ओर लग गए और एक दिन वो कर दिखाया जिससे हर भारतीय को उन पर गर्व है।
पटियाला के एक हिंदू गौड़ ब्राह्मण परिवार में जन्में राकेश ने हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया।
किस्मत ने लिया यू-टर्न 1966 में एनडीए पास कर इंडियन एयर फोर्स कैडेट बने राकेश शर्मा ने 1970 में भारतीय वायु सेना को ज्वाइन कर लिया। फिर यहीं से इनकी किस्मत ने यू-टर्न लिया और राकेश ने कुछ ऎसा कर दिखाया कि आज उनके नाम से हर भारतीय का सीना फक्र से चौड़ा हो जाता है।
मात्र 21 साल की उम्र में ही भारतीय वायु सेना में शामिल होने का बाद राकेश का जोश दूगना हो गया और वो इसे बरकरार रखते हुए तेजी से आगे बढ़ते गए।
पाकिस्तान से युद्ध के बाद चर्चा में आए 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान राकेश शर्मा ने अपने विमान "मिग एअर क्रॉफ्ट" से महत्वपूर्ण सफलता हासिल की। इसी युद्ध के बाद से राकेश शर्मा चर्चा में आए और लोगों ने उनकी योग्यता की जमकर तारीफ की। शर्मा ने दिखा दिया था कि कठिन परिस्थितियों में भी किस तरह शानदार काम किया जा सकता है।
अंतरिक्ष यात्रा
भारत (इंडियन स्पेस रिसर्च सेण्टर) और सोवियत संघ (इन्टरकॉसमॉस) के इस संयुक्त अंतरिक्ष मिशन में चयन के उपरान्त राकेश शर्मा को सोवियत संघ के कज़ाकिस्तान में स्थितबैकानूर में अंतरिक्ष प्रशिक्षण के लिए भेज दिया गया। उनके साथ एक और भारतीय रविश मल्होत्रा भी भेजे गए थे। प्रशिक्षण के उपरान्त आखिर वो दिन आ ही गया जिसका सभी भारतियों कोइंतज़ार था। 3 अप्रैल, 1984 का वह ऐतिहासिक दिन था, जब तत्कालीन सोवियत संघ के बैकानूर से सोयूज टी-11 अंतरिक्ष यान ने तीन अंतरिक्ष यात्रियों के साथ उड़ान भरी। इस अंतरिक्ष दल मेंराकेश शर्मा के अतिरिक्त अंतरिक्ष यान के कमांडर वाई. वी. मालिशेव और फ़्लाइट इंजीनियर जी. एम स्ट्रकोलॉफ़ थे। अंतरिक्ष यान सोयूज टी-11 ने सफलता पूर्वक तीनों यात्रियों को सोवियतरूस के ऑर्बिटल स्टेशन सेल्यूत-7 में पहुँचा दिया।
राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष में कुल 7 दिन 21 घंटे और 40 मिनट बिताया। इस अंतरिक्ष दल ने 43 प्रयोग किये जिसके अंतर्गत वैज्ञानिक और तकनीकी अध्ययन शामिल था। इस मिशनपर राकेश शर्मा को बायो-मेडिसिन और रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र से सम्बंधित जिम्मेदारी सौंपी गयी थी।
इस अंतरिक्ष यात्रा के दौरान उड़ान दल ने मास्को में सोवियत अधिकारियों के साथ और फिर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के साथ एक जॉइंट टेलीविज़न न्यूज़ कांफ्रेंसकिया। जब इंदिरा गाँधी ने राकेश शर्मा से पूछा, “अपना भारत अंतरिक्ष से कैसा दिखता है?” तब उन्होंने जबाब दिया, “सारे जहाँ से अच्छा …..”। इस मिशन के साथ भारत अंतरिक्ष में मानवभेजने वाले देशों की श्रेणी में आ गया। भारत ऐसा करने वाला विश्व का 14वां देश बन गया। इस महत्वपूर्ण क्षण को लाखों भारतवासियों ने अपने टेलीविज़न सेट पर देखा।
कार्यभार
सेल्यूत-7 में रहते हुए राकेश शर्मा ने भारत की कई तस्वीरें उतारीं। अंतरिक्ष में उन्होंने सात दिन रहकर 33 प्रयोग किए। भारहीनता से पैदा होने वाले असर से निपटने के लिए राकेशशर्मा ने अंतरिक्ष में अभ्यास किया। उनका काम रिमोट सेंसिंग से भी जुड़ा था। इस दौरान तीनों अंतरिक्ष यात्रियों ने स्पेस स्टेशन से मॉस्को और नई दिल्ली से साझा संवाददाता सम्मेलन को भीसंबोधित किया। यह ऐसा गौरवपूर्ण क्षण था, जिसे करोड़ों भारतवासियों ने अपने टेलीविज़न सेट पर देखा और संजो लिया।
मिशन की समाप्ति
राकेश शर्मा जब अंतरिक्ष यात्रा से भारत लौटकर आये थे तो इंदिरा गाँधी ने पूछा था कि हमारा भारत अंतरिक्ष से कैसा लगता है, तब राकेश ने जवाब दिया था- 'सारे जहाँ से अच्छाहिन्दुस्तान हमारा'। विंग कमाडर के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद राकेश शर्मा 'हिन्दुस्तान एरोनेट्किस लिमिटेड' में टेस्ट पायलट के तौर पर कार्य करते रहे। इसी समय वह पल भी आया था, जब वे एक हादसे में बाल-बाल बच गए थे।
इसरो सदस्य
नवम्बर, 2006 में राकेश शर्मा 'भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन' (इसरो) की समिति में भी सदस्य रूप में शामिल थे। इस समिति ने नए भारतीय अंतरिक्ष उडा़न कार्यक्रम कोअनुमति दी थी। अब बेंगलुरु में रहने वाले राकेश शर्मा ऑटोमेटेड वर्कफ़्लोर कम्पनी के बोर्ड चेयमैन की हैसियत से काम कर रहे हैं।
स्पेसफ्लाइट –
1984 में अंतरिक्ष में जाने वाले वे पहले भारतीय इंसान बने, अंतरिक्ष जाने के लिए उन्होंने सोवियत रॉकेट सोयुज टी-11 से उड़ान भरी थी, जिसे 2 अप्रैल 1984 को बैकोनूर कॉस्मोड्रोमे, कजाख से छोड़ा गया था। वे अंतरिक्ष में 7 दीन 21 घंटे और 40 मिनट तक रहे थे। इस दौरान उन्होंने कई वैज्ञानिक और तांत्रिक प्रयोग किये जिनमे 43 एक्सपेरिमेंटल सेशन भी शामिल है।उनका ज्यादातर कार्य बायो-मेडिसिन और रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र में ही रहा है।
उनके क्रू ने जॉइंट टेलीविज़न पर पहले मास्को ऑफिसियल और फिर भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से कांफ्रेंस भी की थी। जब इंदिरा गांधी ने पूछा था की अंतरिक्ष से हमारा भारतकैसा दिखाई देता है तो राकेश शर्मा ने जवाब दिया था, सारे जहाँ से अच्छा। उस समय किसी इंसान को अंतरिक्ष में भेजने वाला भारत 14 वा देश बना था।
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