Anmol Vachan

Posted On: 17-03-2021

हिल रहा था पानी का #कलश कीचड़ से सनी उसकी देह पर भीगे आँचल से झलकते अंग जैसे हमारी सभ्यता का शव हो! कभी गाये थे उसने कलश की पवित्र गरिमाओं के गीत अँजुरी मे भर मंत्र की तरह, और इन सभ्यताओं ने सुनी थी ओस की टप टप को संगीत में चमकते, गरजते, बरसते हुए भीगी रातों में पानी की धज को!

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