Posted On: 13-08-2019

Mother

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Mother







हजारो फूल चाहिए,

एक माला बनाने के लिए,

हजारों दीपक चाहिए,

एक आरती सजाने के लिए,

हजारों बूंदे चाहिए,

समुंदर बनाने के लिए,

परंतु मां अकेली ही
बच्चों की जिंदगी को स्वर्ग बनाने के लिए|


मैं रोज देखता सुबह सुबह

मां,  अन सवँरी बासी सी |

कंधे बच्चों का बस्ता ले

कुछ लेती हुई उबासी सी |

कुछ मना रही वो कुछ खा ले

कुछ मुंह में केला ठूंस  रही |

तुमने रख ली ना सब किताबें

कुछ होमवर्क का पूछ रही |

अपनी मां की उंगली थामें

अलसाया बच्चा रहा दौड़ |

है हॉर्न बजाती स्कूल बस

वो कहीं उसको जाए छोड़ |

भारी सा बस्ता उसे थमा

वह उसे चढाती है बस पर |

निश्चिंत भाव से फिर वापस

वह घर लोटा करती हंसकर |

दोपहर में फिर जब बस के

आने का होता है टाइम |

आकुल व्याकुल सी बच्चे का

वह इंतजार करती हर क्षण |

बस से ज्यों ही उतरे बच्चा

ले लेती उसका बेग थाम |

मैं देखा करता रोज रोज

बच्चों का बोझ उठा पाते |

बूढ़े होंगे जब माता-पिता

जब ऐसे भी दिन आएंगे |

बच्चे उतने अपनेपन  से

क्या उनका बोझ उठाएंगे ?

 


कितना अल्हड बचपन था मेरा

जाने अब वह कहां गया ?

पल में रोना पल में हंसना

ऐसे ही वक़्त गुजर गया

चारों तरफ मैं आंखें घुमाये

मां को खोजा करता था|

आंखों से ओझल होते ही

मैं जोर-जोर से रोता था

मां से नजरें मिलते ही

मैं जाने क्या कुछ कहता था

कितने प्यार से मां मुझे

बाहों में भर लेती थी |

मेरे गालों पर चुंबन कर

वह छाती से लगा लेती थी|

दुलारी मां की बांहों में मैं|

आंचल से खेलता करता था

अपनी बाहों के झूले में

मां रोज झुलाया करती थी

उड़ते हुए पक्षियों को दिखाकर

मेरा मन बहलाती थी

अपने कोमल हाथों से मालिश कर

वह मुझे नहलाया करती थी|

मेरे घूंगराले बालों को मां

हाथों से सवांरा  करती थी

फिर वह मुझे लोरी सुना कर

राजा की कथा सुनाती थी

कितना अल्हड बचपन था  मेरा

जाने अब वह कहाँ गया ?

 



हाथ जोड़ करे नमन हम,

इसको माँ (Mother) स्वीकार करो |

भले बुरे, जैसे भो हो हम,

हमको अंगीकार करो |

पामर, अधम, नीच और पापी,

इस दुनिया में बहुतेरे,

ऐसा नम्र निवेदन है माँ,

     तुम सबका उद्धार करो ||

पंडित दयाल श्रीवास्तव    


शब्द नहीं हैं कुछ मेरे पास,

बनाते हैं जो तुम्हे कुछ ख़ास|

इस धरा में कुछ भी नही है इतना पावन,

जितना मधुर मन तुम्हारे पास है मनभावन|

जिन परिस्थितियों का सामना कल तुम्हे करते देखा,

आज उसकी कसौटी पर खुद को खड़े देखा|

दिन रात हमे पालने में तुमने एक किया है,

आज हमने उन्ही दिनों को अलग और रातों को अलग किया है|

गंभीरता तुझमे पहाड़ों से कुछ ज़्यादा है,

गहराई तुझमे समुंद्र से कुछ ज़्यादा है,

ऊँचाई तुझमे अंबार से कुछ ज़्यादा है,

धैर्यता तुझमे पृथ्वी से कुछ ज़्यादा है|

सबको खुश रख कर तुमने आँसू पीये हैं,

हमे खुश रखने मे तुमने सब कुर्बान किया है|

धैर्यता का पाठ अभी तुमसे सीखना है,

शालीनता से रहना अभी तुमसे सीखना है|

कभी यह सोचता हूँ कि माँ बड़ी है या भगवान,

जवाब देने से डरता हूँ कहीं बुरा ना मान जायें भगवान|



उससे धनी न यह संसार,

पास है जिसके माँ का प्यार |

झूठ मूठ गुस्साती वह,

झट प्रसन्न हो जाती वह |

दुखी देख सन्तानो को,

हंसकर गले लगाती वह |

अपने सारे कष्ट भुलाकर,

करती खुशियों की बौछार |

गोद में उसकी सुख आराम,

उससे बड़ा न कोई नाम |

उसके संस्कारो से मिलता है,

दुनिया में हमको सम्मान |

पूजनीय वह सारे जग की,

      माँ तुमको है बारम्बार प्रणा