किसान की सीख

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किसान की सीख

बहुत ठण्ड पड़ रही थी । एक किसान रविवार के दिन मीलों चलकर पहाड़ी पर स्थित एक चर्च पर पहुंचा। चर्च का दरवाज़ा बंद था।

किसान ऊँची आवाज़ में बोला , ” अरे कोई है ?”


 
चर्च-Church

पादरी बाहर आया , वह किसान को देखकर कुछ हैरान था, ” आज ठण्ड बहुत है , मुझे तो उम्मीद ही नहीं थी कि आज की प्रार्थना में कोई आएगा, इसीलिए मैंने भी कोई तैयारी नहीं की , अब सिर्फ एक आदमी के लिए इतना सबकुछ करना ठीक रहेगा क्या … क्यों ना हम आज पूजा रहने दें और अपने घरों में जाकर आराम करें ?”, पादरी बोला।

“साहब , मैं तो एक साधारण सा किसान हूँ , मैं रोज सुबह कबूतरों को दाना डालने जाता हूँ , और अगर एक कबूतर भी होता है तो मैं उसे दाना ज़रूर खिलाता हूँ। “, किसान बोला।

पादरी यह सुनकर थोड़ा शर्मिंदा हुआ , और उसने मन ही मन ईश्वर से क्षमा मांगी और प्रार्थना में जुट गया , पहले  उसने सारी टेबल-कुर्सियां साफ़ कीं , हर एक टेबल पर लेजाकर बाइबिल रखी, मोमबत्तियां जलाईं और पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की।

3-4 घंटे बाद प्रार्थना खत्म हुई , पादरी ने किसान को धन्यवाद दिया कि उसने उसे अपना कर्तव्य याद दिलाया।


 
किसान कुछ नहीं बोला और उठ कर जाने लगा। इस पर पादरी ने पुछा , ” क्या हुआ , प्रार्थना में कोई कमी रह गयी क्या ?”

किसान बोला, “मैं क्या बताऊँ पादरी साहब; मैं तो एक साधारण किसान हूँ , लेकिन जब मैं कबूतरों को दाना डालने जाता हूँ ,और अगर एक ही कबूतर आता है तो मैं सारे दाने उसी को नहीं खिला देता। “

पादरी को एक बार फिर एहसास हुआ कि सिर्फ अपना कर्तव्य निभाना ही ज़रूरी नहीं है , बल्कि परिस्थिति के हिसाब से खुद को ढालना भी आवश्यक है, उसे चाहिए था कि सिर्फ एक आदमी के हिसाब से तैयारी करके प्रार्थना शुरू कर देता , जबकि वो तमाम लोगों के हिसाब से तैयारी में जुट गया।