साधु और फांसी का फंदा

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साधु और फांसी का फंदा

एक बार की बात है कि एक साधु को गुरु नानक देव जी के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ| वह साधु,भेष को बहुत महत्व देते थे| उनको वास्तव में गुरु और नाम पर कोई विश्वास नहीं था| एक दिन उसने कहा कि मुझे कोई ऐसा महात्मा बताओ, जिसकी मैं संगति कर सकूं|

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गुरु नानक साहिब ने कहा कि बड़े-बड़े महात्मा है; फिर भी अगर तुझे जाना है तो रास्ते में एक बढ़ई का घर है उसके पास चला जा|जब वह साधु वहां पहुंचा तो बढ़ई उठ खड़ा हुआ और एक चारपाई डाल दी| बहुत देर तक बढ़ई ने साधु से कोई बात नहीं की बल्कि अपना काम करता रहा| जब साधु थोड़ी देर बैठ कर काफी निराश होकर जाने लगा तो बढ़ई ने कहा:- “2 घंटे सब्र करो महाराज! मुझे एक बहुत जरूरी काम है, पहले वह निपटा लूँ फिर आपकी सेवा में बैठूंगा|”

साधु ने मन में सोचा कि यह तो निपट संसारी है| इससे दुनिया के काम ही नहीं छूटते| यह कैसा महात्मा है? तभी एक आदमी दौड़ता हुआ उस बढ़ई के घर आकर बोला:-” आपका लड़का छत से गिरकर मर गया है|”

इस बात को सुनकर बढ़ाई जरा भी नहीं घबराया और शांतिपूर्वक बोला:-” सब मालिक की मर्जी|”दाह संस्कार के बाद और आए हुए लोगों से विदा मांगते हुए वह बढ़ई, साधु के पास आया|

साधु उस बढ़ई से कहने लगे:-” जब आपको इन सब बातों का पता था तब आपने अपने लड़के को गिरने से क्यों नहीं बचाया?”

बढ़ई ने कहा:-” बच्चे को इसी तरह से मरना था और बच्चे से मेरा रिश्ता इसी तरह से टूटना था| यह सब भले के लिए ही हुआ है और मैं मालिक की रजा में राजी हूं|”

इस पर साधु ने कहा:-” जरूर तेरे बेटे के साथ तेरी दुश्मनी थी| तू बेटे को अपने पास रखना ही नहीं चाहता था|” यह सब कह कर साधु वहां से नाराज होकर जाने लगा तो बढ़ई ने साधु से कहा:-” तुम मुझे क्या कहते हो, आज आठवें दिन तू फांसी पर लटक कर मारेगा| अगर बच सकता है तो बच जा| मैं तो यही समझता हूं कि जो कुछ होना होता है, होकर ही रहता है|”

अब साधु को चिंता हो गई कि कहीं मेरे साथ भी ऐसा ही ना हो जाए| साधु ने सोचा कि इस पेड़ से बहुत दूर चला जाऊंगा तो इससे फांसी लगने का सवाल ही नहीं रहेगा| यह सोचकर वह 4 दिन तक भूखा-प्यासा जितना दौड़ सकता था दौड़ता रहा| भूख-प्यास से व्याकुल होकर वह गिर पड़ा और सो गया| जब उठा तो दिशा का ख्याल ही नहीं रहा और वापस उसी ओर दौड़ने लगा जिस ओर से आया था|

फिर 4 दिन तक लगातार भागता रहा और आखिर उसी जगह पर पहुंच गया जहां से 8 दिन पहले भागना शुरु किया था| जब 8 दिन हो गए तो सोचने लगा कि अब मुझे कौन फांसी पर लटका सकता है| मैं तो उस पेड़ से कोसों दूर चला आया हूं| वह बढ़ई झूठा है, आज मेरा आठवां दिन है| यह सोचकर साधु,उसी पेड़ के नीचे सो गया|

वहां से कुछ दूर एक शहर में कुछ चोर, चोरी का माल लूटकर उसी रास्ते से निकल रहे थे| जितना सोना चांदी और सामान था, उन्होंने आपस में बांट लिया| पर एक सोने का हार बाकी रह गया| उनके ध्यान में आया कि यह बहुत खूबसूरत है क्यों ना इसे साधु के गले में डाल दिया जाए| यह सोचकर वह हार उन्होंने सोए हुए साधु के गले में डाल दिया और वहां से भाग गए|

जब दिन निकला तो सिपाहियों ने उस साधु को पकड़ लिया और राजा के पास ले गए| राजा ने साधु के बयान लिए बिना ही उसे फांसी की सजा सुना दी और कहा:- “इसे उसी पेड़ से लटका कर फांसी दे दी जाए जहां पर यह सो रहा था|”

उस साधु से पूछा गया:- “यदि तुम्हें किसी से मिलना हो तो बताओ”|

साधु ने कहा:-“इस गांव में एक बढ़ई रहता है, मुझे उससे मिलना है”|

उस बढ़ई को बुलाया गया जब वह आया तो साधू बोला:-” आप ठीक कहते थे| होनी को कोई नहीं टाल सकता”| अब सामने वही पेड़ हैं, वही मैं हूं और फांसी का हुक्म हो चुका है| कृपा करके मुझे बचा लीजिए| मैं सारी उम्र आपका एहसान नहीं भूलूंगा|

बढ़ई ने कहा मैं अपने सतगुरु नानक साहिब का सिमरन करता हूं और मुझे आशा है कि वह मेरी विनती जरूर सुनेंगे| थोड़ी देर में ही खबर आई कि असली चोर पकड़े गए हैं| उन चोरों ने चोरी का सारा माल वापस कर दिया और राजा ने उस साधु को छोड़ दिया| साधु, बढ़ई के घर पर पहुंचा और उनसे शिक्षा दीक्षा लेकर उनका सच्चा सेवक बन गया|