अल्ट्रा हाइटेक मछलियां

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अल्ट्रा हाइटेक मछलियां

बकुल बगुला हर दिन की तरह घात लगाए मछलियों के इंतजार में बैठा रहा। मगर मछलियां भी कम हाइटेक नहीं थीं। दूरबीन की मदद से ही वे पता कर लेती थीं कि शिकारी कहां बैठा है? तभी एक अन्य बगुले ने तरकीब निकाली, जिससे मछलियां परेशान हो गईं।

कुल बगुला रोज की तरह घात लगाए बैठा था, पर मछलियां थीं उसकी पहुंच से बहुत दूर। एक भी मछली उसके चंगुल में नहीं आ रही थी। बकुल की भूख के मारे आंतें सूख रही थीं कि कब कोई मछली उसकी पकड़ में आए और वह उसे झट से खा जाए। अचानक मछलियों का एक झुंड उधर आता दिखा। बकुल ने सांस रोक ली। नजर हर एक आहट पर टिका दी।

चमको मछली बोली, ‘बहन, मुझे यहां किसी बगुले की गंध आ रही है।’

उछलो मछली ने अपने मुंह से पानी की धार खींची और बोली, ‘अच्छा।’

फिसलो मछली ने आसपास देखकर कहा, ‘हां, महसूस हो रहा है बहन। पर दिख कुछ भी नहीं रहा।’

‘साल भर से जमे इस पानी में तुम्हें क्या ताजमहल दिखेगा?’ 

चमको ने कहा, ‘देख नहीं रही हो कि पानी में कितनी काई है।’

‘क्या हम वापस चलें।’ फिसलो ने उदास होते हुए कहा।

‘नहीं! अभी मैं अपनी छुटकी को बुलाती हूं। दूरबीन उसी के पास है। वह तालाब के दूसरे कोने में मछलियों को तंग करने वाले बगुले को सबक सिखाने गई है।’

‘यह दूरबीन क्या होती है बहन?’ तभी हैरान होते हुए उछलो पूछ बैठी। वैसे यही बात फिसलो भी पूछना चाहती थी।

‘इससे किसी भी मछलीखोर जानवर को दूर से ही देखा जा सकता है।’

तभी छुटकी आती दिख गई। ‘देखो, मेरी बेटी आ गई।’ चमको ने आंखें मटकाते हुए कहा। ‘मां, मैंने बगुले को सबक सिखा दिया। बेचारा हम लोगों की तलाश में बैठा-बैठा थककर पानी में ही लुढ़क गया।’ कहकर छुटकी हंसने लगी।

चमको ने फौरन उससे दूरबीन ले ली। फिर चारों ओर देखा। पांच मीटर की दूरी पर उसे मरियल सा बकुल बगुला दिख गया। उसने बारी-बारी से उछलो और फिसलोे को भी दिखाया। फिर कहा, ‘अब देखा, क्या होती है दूरबीन!’

‘हां, बहन, देख ली। यह तो बहुत काम की चीज है।’ दोनों एक साथ बोल उठीं।

मछलियों ने अपना रास्ता पकड़ा और बलखाती-इठलाती निकल गईं। बकुल घात लगाए बैठा ही रहा। उसने दिनभर में तालाब में कई स्थान बदले, पर मछलियां उससे बचकर निकलती रहीं। उसके होश उड़ गए। वह परेशान रहने लगा। एक दिन सफेद बगुला वहां आ पहुंचा। वह नौजवान था। बकुल ने उसे देखा। उदास होकर कहा, ‘तुम भी यहां मरने आ गए?’

‘क्यों, क्या हुआ?’ उसने पूछा।

‘यहां भूखे-प्यासे मर जाओगे। कोई भी मछली हाथ नहीं आएगी। मैं कब से यहां हूं, मगर अब तक कोई मछली हाथ नहीं लगी। इस पोखर की सारी मछलियां ‘हाइटेक’ हैं। पता नहीं, कैसे मेरे होने की उन्हें पहले ही सूचना मिल जाती है और वे भाग जाती हैं। मैं तो बेमौत मर रहा हूं। तुम भी मारे जाओगे।’ 

पर सफेदू पर तो जैसे उसकी बातों का कोई असर ही नहीं हुआ, ‘कोई बात नहीं, यहां  की मछलियां हाइटेक हैं, तो मैं भी ‘सुपर हाइटेक’ हूं ।’ 
सफेदू ने कहा, ‘अगर उनके पास दूरबीन है, तो मेरे पास ‘फिश डिटेक्टर’ है।’ सफेदू की बात से बकुल को कुछ राहत मिली। सफेदू पानी में उतर गया। फिर उसने अपने यंत्र को पानी में डुबो दिया। उसके बाद बताया, ‘सारी मछलियां दाईं ओर हैं।’ कहता हुआ वह उसी दिशा में बढ़ने लगा।

पर मछलियां फिर से अलग खिसक गईं। सफेदू वहीं रुक गया। मछलियों ने उसे रुके हुए देखा, तो आराम करने लगीं। मछलियों को यही बात भारी पड़ी। सफेदू ने दबे कदमों से जाकर एक-एक को दबोचना शुरू कर दिया।  अब तो यह उनका रोज का ही काम हो गया। सफेदू मछलियों को ढूंढ़ता, दोनों उन्हें खाते और मौज मनाते। धीरे-धीरे मछलियां कम होने लगीं। चमको, उछलो और फिसलो को चिंता होने लगी कि आखिर उसकी सहेलियां कहां गायब हो रही हैं? एक दिन उछलोे ने सफेदू को शिकार करते देख लिया। उसने चमको को बताया, ‘बगुले के पास हमारी जानकारी लगाने का एक यंत्र है। अब तो वह रात-दिन कभी भी हमें अपना भोजन बना सकता है। अब क्या होगा बहन!’ वह उदास होते हुए बोली। उसने छुटकी से सारी बात बता दी ।

‘तो इसमें कौन-सी बड़ी बात है! मैं उसे ऐसा सबक सिखाऊंगी कि उसके होश ठिकाने आ जाएंगे।’ छुटकी ने कहा, ‘अगर वह ‘सुपर हाइटेक’ है, तो मैं ‘अल्ट्रा हाइटेक’ हूं। मैं जैसा कहूं, सभी वैसा ही करते जाना।’ छुटकी ने एक योजना तैयार कर ली।
सुबह होते ही बकुल ने कहा, ‘दोस्त, मछलियां खाने के लिए मेरी जीभ कब से 
मचल रही है।’

‘मैं भी तो तैयार बैठा हूं।’सफेदू ने कहा और दोनों उड़कर पोखर में जा उतरे। सफेदू ने फिश-डिटेक्टर पानी में डाला, ‘ओह, इतनी सारी मछलियां!’

‘कहां दोस्त?’ बकुल की लार टपकने लगी।  ‘शी... शांत रहो। जब मैं कहूं, तभी चोंच मारना।’ दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। तभी सफेदू ने

कहा, ‘अटैक...!’ और दोनों ने पूरी ताकत से चोट मार दी। उनके मुंह में मछली तो आई, लेकिन पत्थर जैसी कठोर, मानो चोंच ही टूट गई हो उनकी। उनका सिर चकराने लगा।

इससे पहले कि वे कुछ समझ पाते, छुटकी ने बकुल के और फिसलो ने सफेदू की चोंच पर अपनी पूंछ  से जोरदार वार किया। चोंच में पकड़ी मछलियां एक झटके के साथ उनके पेट में चली गईं। इससे पहले कि वे संभलते, मछलियां खिलखिलाकर हंस पड़ीं, ‘और खाओ नरम-मुलायम चारा। प्लास्टिक की डुप्लीकेट मछलियां तुम्हारे पेट में हमेशा जिंदा रहेंगी। उन्हें तुम्हारे पेट की गर्मी कभी नहीं पचा पाएगी।’

मछलियां सरसराती हुई एक ओर निकल गईं। 

‘क्या।’ बकुल और सफेदू सन्न रह गए और ‘छप’ से पानी में पसर गए ।