Meri Shadi

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Meri Shadi

मेरी शादी सत्ताईस साल पहले आज के ही दिन मुझे दूल्हा बनाया गया था और मेरी श्रीमतीजी को दुल्हन. हम दोनों से अधिक खुश थे हमारे घरवाले लोग. मेरी शादी का इतिहास यह है कि यदि उसी समय नहीं हो गई होती तो मैं एकदम बुड्ढा हो गया होता. मेरी शादी के समय तक मेरे बाबा का साम्राज्य पूरी तरह समाप्त हो चुका था. क्यूंकि मेरे छोटे भाई साहेब बहुत पैसे कमाने लगे थे. पिताजी इस आर्थिक दुनिया में इतने कमजोर हो गए थे कि मेरी शादी के बारे में सोचने के लिए उन्हें अधिकार ही नहीं दिया गया था.लेकिन हम सबको परेशान करनेवाली बात यह थी कि मेरे छोटे भाई की नौकरी एयरफोर्स में लग गई थी. और मैं लोगों के बहकावे में आकर पीएचडी की ओर प्रस्थान कर दिया था. यही कारण था कि मेरे स्वजातीय लोगों ने २८ साल की उम्र में ही मुझे बुड्ढा घोषित कर दिया था. जब कोई मेरे यहाँ शादी का प्रस्ताव लेकर आता, उसे मैं आदि मानव लगता और एयरमैन मेरा छोटा भाई दुनिया का सबसे सुन्दर राजकुमार . उधर भैया ने जबसे अम्बेस्डर कार लिया था तब से ट्रैफिक शब्दावली में ही घरेलू बातें करने लगे थे. मतलब मुझे ब्रेकर कहते थे. मुझे सुना कर कहते कि मेरे सामने बड़ा ब्रेकर है, इसीलिए एयरमैन भाई की शादी नहीं हो पा रही है. कितने रिस्तेदारो ने मनौती ली कि किसी तरह यह ब्रेकर हटे और उनकी बहन-बेटी के सुहाग के रास्ते साफ हों.उसी समय मेरे ससुराली लोगों को मालूम हुआ कि झलखोरा में कोई लड़का अपनी अज्ञानता के कारण इतना पढ़ चुका है कि वैवाहिक बाजार में उसका मूल्य ख़तम हो चुका है. सस्ते में सौदा हो जायेगा. इसी उम्मीद से लोग पहली बार मेरे यहाँ पधारे एक दिन. जाड़े के दिन थे और शाम का समय. मैं अपनी पढाई को कोसते हुए ठिठुर रहा था. सिकुड़ कर कुर्सी पर इस तरह बैठा हुआ था कि मेरे सामने मेरे पिताजी भी जवान लग रहे थे. ससुराली लोग जब मेरे यहाँ पधारे तब मेरे होनेवाले बड़े साले साहेब और उनके गोतिया के बड़े भाई दोनों ने ही सबसे पहले मेरे पांव छुए, फिर चाचाजी के और उनके बाद मेरे पिता जी के. फिर भैया को कोई नादान बच्चा जानकर उनकी ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया.तब भैया ने इशारे से अपना गुस्सा मेरे ऊपर उतारा और पानी लाने के लिए आदेश करते हुए अपना बड़प्पन दर्शाया . मैं पानी लेने घर गया तो भाभी ने इतना स्वेटर पहना दिए कि मैं शर्म से स्वयं पानी-पानी हो गया. और तब तक दुआर पर नहीं जाने को ठान लिया जब तक मेरी शादी तय न हो जाये. हुआ भी वही. कन्या पक्ष के प्रस्ताव से पहले ही भाई साहेब ने बाबा के शब्दों में बोलना शुरू किया---"आपके यहाँ शादी नहीं होगी तो कहाँ होगी? आपसे अच्छा और कौन है अपनी जाति मे भला! आप अपने समाज के सुरेमन हैं-----हमें रिश्ता मंजूर है."मेरे ससुरालियों ने सोचा भी नहीं होगा कि इतना सज्जन आदमी है इस दुनिया में. सुबह में भाभी ने अपने बक्से से एक लक्स साबुन निकालकर मुझे दिया और बोरिंग पर जाकर नहाने का सुझाव भी. पडोसी गांव के पंडित जी, जिनके दादाजी ने मेरे पिताजी की बारात भद्रा में लेकर शादी से एक दिन पहले गए थे, और सारे बाराती जेल जाते-जाते किसी तरह बचे थे, वे बिना बुलाये पहुँच गए बाबूजी के पास और घर में नई बहु आने का आशीर्वद देने लगे. बरछिया हो गया. मुझे जितने पैसे मिले उसे लेकर मैं पीएचडी करने रांची चला गया.उधर ससुराल में हल्ला हुआ कि लड़का बुड्ढा है. सर पर बाल नहीं है, उसकी शादी नहीं हो रही थी. उसका छोटा भाई बहुत सुन्दर है, लड़की के लायक वही ठीक दूल्हा था. श्रीमतीजी बताती हैं कि तब मेरी सासु मां खूब रोया करती थीं. पर साले साहेब ने तो मुझे उसी दिन प्रोफेसर घोषित कर दिए थे. सबको बताते कि लड़का प्रोफेसर है. मेरी तिलक के दिन भी कई अनजान लोगों ने मुझे प्रोफेसर ही संबोधित किया था.धूमधाम से बारात गई. पडोसी गांव कम्हरियां में गंगा नदी के किनारे बारात पहुंची और लोग नहाने लगे. उधर मेरे ससुराल के छोटे-छोटे बच्चे दूल्हा देखने पहुंच गए. गांव में चर्चा थी कि दुलहा गंजा है, बुड्ढा है. इसी आधार पर बच्चे दूल्हे की पहचान करने लगे थे. लड़कों की टोली जिसे दूल्हा समझ कर निहार रही थी, वे थे मेरे गांव के राधा राय. हाल ही में किसी की मृत्यु के कारण वे माथा मुड़ाये हुए थे. जब उन्हें शक हुआ तो मुझे इशारा करके बताये कि दूल्हा की तरह हो जाओ बेटा ! नहीं तो साले मुझे ही माला पहना देंगे. फिर वे ही बच्चों को बताये कि दूल्हा नहाने गया है गंगा जी में.निराश बच्चों को किसी बुजुर्ग महिला ने बताया कि दूल्हे की असली पहचान है आँख में काजल . इस आधार पर जब बच्चों ने पड़ताल की तो गांव में मेरी तारीफ होने लगी. बच्चों ने गांव में जाकर बताया कि वे दूल्हा देख कर, पहचान कर और उससे बात करके आये हैं. उसकी आँख में काजल है और लम्बे-लम्बे बाल भी हैं. पर असली बात यह थी कि इस बार बच्चे नाच पार्टी के एक नचनियां को देख कर गए थे. शादी के लिए जब मुझे आँगन में ले जाया गया तब एक अनजान बुजुर्ग महिला ने अपनी बेटी से परिचय कराते हुए बताया कि यही मेरी साली हैं, जिसकी शादी अभी नहीं हुई हैं. इसका अर्थ यह था कि यदि मैं चाहूंगा तो उसकी शादी मेरे एयरमैन भाई से हो सकती है. फिर उस साली ने बिना मतलब के मुझे इतनी बार "जीजा-जीजा" कहा कि उसी दिन मुझे इस शब्द से अरुचि हो गई. शादी के समय पंडित जी सहित गांव की महिलाओं ने मेरी दुल्हन को इस तरह छोप रखा था कि पता ही नहीं चल रहा था कि सिंदूर कहाँ डालना है. लगभग एक मोटरीनुमे मानव आकृति के सर से थोड़ा आँचल हटा कर वहीँ मुझे सिंदूर छोड़ने को कहा गया. फिर इसी क्रिया को मेरी शादी होना घोषित किया गया.श्रीमती जी बताती हैं कि जब यह शादी हो रही थी उस समय उनका ध्यान सामियाने से आ रही नचनियां के गाने की धुन की ओर था. वह देहाती स्वर में गा रहा था---"लहरिया लूट—अ—ए---राजा--आ---!"आज के फेसबूकिया बिआह वाले लोग ऐसे बिआह का मजा क्या जानेंगे !(उन्तीस साल पहले की याद)