मेरी प्रगति या अगति कायह मापदण्ड बदलो तुम,जुए के पत्ते-सामैं अभी अनिश्चित हूँ ।मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं,कोपलें उग रही हैं,पत्तियाँ झड़ रही हैं,मैं नया बनने के लिए खराद पर चढ़ रहा हूँ,लड़ता हुआनई राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ ।अगर इस लड़ाई में मेरी साँसें उखड़ गईं,मेरे बाज़ू टूट गए,मेरे चरणों में आँधियों के समूह ठहर गए,मेरे अधरों पर तरंगाकुल संगीत जम गया,या मेरे माथे पर शर्म की लकीरें खिंच गईं,तो मुझे पराजित मत मानना,समझना –तब और भी बड़े पैमाने परमेरे हृदय में असन्तोष उबल रहा होगा,मेरी उम्मीदों के सैनिकों की पराजित पंक्तियाँएक बार औरशक्ति आज़माने कोधूल में खो जाने या कुछ हो जाने कोमचल रही होंगी ।एक और अवसर की प्रतीक्षा मेंमन की क़न्दीलें जल रही होंगी ।ये जो फफोले तलुओं मे दीख रहे हैंये मुझको उकसाते हैं ।पिण्डलियों की उभरी हुई नसेंमुझ पर व्यंग्य करती हैं ।मुँह पर पड़ी हुई यौवन की झुर्रियाँक़सम देती हैं ।कुछ हो अब, तय है –मुझको आशंकाओं पर क़ाबू पाना है,पत्थरों के सीने मेंप्रतिध्वनि जगाते हुएपरिचित उन राहों में एक बारविजय-गीत गाते हुए जाना है –जिनमें मैं हार चुका हूँ ।मेरी प्रगति या अगति कायह मापदण्ड बदलो तुममैं अभी अनिश्चित हूँ ।
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