Posted On: 13-08-2019

जिंदगी पर आधारित

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जिंदगी पर आधारित

 जिंदगी की आपाधापी में कब हमारी उम्र निकली पता ही नहीं चला|


कंधे पर चढ़ने वाले बच्चे कब कंधे तक आ गए पता ही नहीं चला|

किराए के घर से शुरू हुआ सफर कब अपने घर तक आ गया पता ही नहीं चला|

साइकिल के पैडल मारते हुए हाँफते थे उस वक्त, कब गाड़ियों  में घूमने लगे, पता ही नहीं चला|

हरे भरे पेड़ों से भरे हुए जंगल थे तब, कब हुए कंक्रीट के पता ही नहीं चला|

कभी थे  जिम्मेदारी मां बाप की हम, कब बच्चों के लिए हुए जिम्मेदार हम पता ही नहीं चला|

एक दौर था जब दिन में भी बेखबर सो जाते थे कब रातों की नींद उड़ गई पता ही नहीं चला|

बनेंगे हम भी मां बाप यह सोचकर कटता नहीं था वक्त कब हमारे बच्चे बच्चों वाले हो गए पता ही नहीं चला|

जिन काले घने बालों पर इतराते थे हम कब उनको रंगना शुरू कर दिया पता ही नहीं चला|

दर दर भटकते थे नौकरी की खातिर कब रिटायर होने का समय आ गया पता ही नहीं चला|

बच्चों के लिए कमाने-बचाने में इतने मशगूल हुए हम, कब बच्चे हमसे हुए दूर पता ही नहीं चला|

भरे-पूरे परिवार में सीना चौड़ा रखते थे हम, कब परिवार हम दो पर ही सिमट गया पता ही नहीं चल
 

इस जीवन की चादर में सांसों के ताने बाने हैं,

दुख की थोड़ी सी सलवट है सुख के कुछ फूल सुहाने हैं,

क्यों सोचे आगे क्या होगा अब कल के कौन ठिकाने हैं,

ऊपर बैठा वो  बाजीगर जाने क्या मन में ठाने हैं|

चाहे जितना भी जतन करें भरने का दामन तारों से,

झोली में वही आएंगे जो तेरे नाम के दाने ह
 

नई सदी से मिल रही दर्द भरी सौगात,

बेटा कहता बाप से तेरी क्या औकात|

मंदिर में पूजा करें घर में करें क्लेश,

मां बाप तो बोझ लगे, पत्थर लगे गणेश|

बचे कहां अब शेष हैं दया, धर्म, ईमान

पत्थर के भगवान हैं पत्थर दिल इंसान|

पत्थर के भगवान को लगते छप्पन भोग|

मर जाते हैं फुटपाथ पर भूखे प्यासे लोग|