मखमल की जूती

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मखमल की जूती

एक दिन महाराज कृष्णदेव राय (Krishna Dev Rai) का दरबार लगा हुआ था| महाराज और तेनालीराम में इस बात पर बहस छिड़ गई कि आमतौर पर लोग किसी भी बात पर जल्दी से विश्वास कर लेते हैं या नहीं| तेनालीराम का विचार था कि यदि विश्वास दिलाने वाला व्यक्ति समझदार हो तो लोग किसी भी बात पर विश्वास कर लेते हैं| राजा का मानना था कि लोगों को आसानी से मूर्ख नहीं बनाया जा सकता|



 

 

तेनालीराम ने कहा:-” मैं असंभव से असंभव कार्य को भी करवा सकता हूं और तो और मैं किसी व्यक्ति से राजा पर जूती तक फिकवा सकता हूं| ” राजा ने कहा:-” क्या? मुझे तुम्हारी चुनौती स्वीकार है|” तेनालीराम बोला:- मुझे भी आपकी चुनौती स्वीकार है, लेकिन मुझे इसके लिए कुछ समय चाहिए|

एक महीने बाद राजा कृष्णदेव राय की शादी कुरुख प्रदेश के एक पहाड़ी सरदार की बेटी से तय हो गई| पहाड़ी सरदार को विजयनगर के राजाओं के विवाह के रीति रिवाजों का ज्ञान नहीं था|

राजा कृष्णदेव जी(Krishna Dev Rai) ने सरदार से कहा:-” हर प्रदेश के रीति-रिवाज अलग-अलग होते हैं| उनके बारे में तुम्हें चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है| मुझे तो केवल आपकी बेटी से विवाह करना है”|

परंतु सरदार की इच्छा थी कि राजाओं के विवाह की सारी रस्में पूरी होनी चाहिए| एक दिन तेनालीराम चुपके से सरदार के यहां रस्में समझाने पहुंच गया| सरदार बहुत खुश हुआ| उसने तेनालीराम से वादा किया कि तुम्हारी बातें मैं किसी से नहीं कहूंगा|

तेनालीराम ने सरदार को बताया कि राज परिवारों में एक पुराना रिवाज है कि विवाह की रस्में पूरी हो जाने पर दुल्हन अपने पांव की जूती उतारकर राजा पर फेंकती है| जूती फेंकने का रिवाज यूरोप में भी है, परंतु वहां पर चमड़े की बनी जूती फेंकी जाती है| हमारे यहां चमड़े की जगह मखमल से बनी हुई जूती फेंकने का रिवाज है|

“कुछ भी हो तेलानी राम जी! मखमल की ही सही परंतु है तो वह जूती ही ना! पति पर जूते फेंकना क्या अनुचित नहीं होगा?”

तेनालीराम बोला:-” वैसे तो विजयनगर में यह रीति होती आई है, पर यदि आप इस रिवाज से हिचक रहे हैं तो रहने दीजिए|”

सरदार बोला:-” नहीं, नहीं! लाइए यह मखमल की जूती मुझे दीजिए| मैं अपनी बेटी की शादी में किसी भी प्रकार की कमी नहीं छोड़ना चाहता|”

विवाह की रस्में पूरी हो जाने पर राजा कृष्णदेव राय खुशी-खुशी अपनी पत्नी को घर ले जाने की तैयारी करने लगे| अचानक दुल्हन ने अपने पांव से मखमल की जूती उतारकर हाथ में लेकर मुस्कुराते हुए राजा पर फेंकी| उस समय तेनालीराम राजा के पास ही खड़ा था|

उसने राजा से धीरे से कान में कहा:-” महाराज! दुल्हन को क्षमा कर देना, यह सब मेरा ही करा धरा है|

राजा कृष्णदेव राय (Krishna Dev Rai) हंस पड़े और जूती उठाकर दुल्हन को पैर में पहनने के लिए दे दी| दुल्हन ने क्षमा मांगते हुए कहा:-” रस्म पूरी करने के लिए मुझे यह सब करना पड़ा|”

अपने महल में पहुंचने पर महाराज कृष्णदेव राय (Krishna Dev Rai) को तेनालीराम की कहानी मालूम हो गई|

राजा, तेनालीराम से बोले:-” तुम्हारा कहना ठीक ही था कि लोग किसी भी बात पर जल्दी ही विश्वास कर लेते हैं|