जैसा अन्न वैसा मन

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जैसा अन्न वैसा मन

एक बार एक ऋषि, अतिथि के तौर पर एक राजा के यहां पहुंचे| राजा ने उनका खूब आदर सत्कार किया और उन्हें भोजन कराया| भोजन करने के कुछ घंटों बाद ही ऋषि की मनोवृत्ति में अंतर आ गया और उन्होंने राजा का हार चुरा लिया|



 

अब राजा धर्म संकट में पड़ गया कि ऋषि पर दोष कैसे लगाएं?

काफी सोच विचार करने के बाद विद्वानों ने राय दी, “महाराज, अन्न का प्रभाव मन पर भी पड़ता है| हो सकता है कि राजकोष का यह अन्न ही दोषपूर्ण हो, इसलिए इसकी जांच कराई जाए”


 
राजा ने अन्न की जांच कराई तो पाया कि जिस अन्न से ऋषि का भोजन बनाया गया था| एक चोर से बरामद किया गया था| तब राजा की समझ में आया कि ऋषि का व्यवहार ऐसा क्यों हो गया 
हमारी मानसिक चेतना और स्वस्थ भी वैसा ही हो जाता है, जैसा हम अन्न खाते हैं| यदि हमारा भोजन संतुलित नहीं है तो मन भी संतुलित नहीं होगा