खुले तूफ़ानों के शोरों का शायद ही मैंने ऐसा कभी मंजर देखा । अंधियारी रात में जब दर्द से तड़पते हुए एक बवंडर को देखा ।।
पराया बेशक है पर वो मेरी आत्मा के अन्दर है । महज यह सपना भी उसके लिए कितना सुन्दर है ।।
यह ज़माना भी न जाने क्या क्या कहता है । न चैन से जीने देता है और न चैन से मरने देता है ।
मैंने सोचा मोहब्बत का मारा एक मैं ही हूं सिर्फ शहर में। नज़र घुमाके देखी तो अपने अपने महबूब को छिपाकर जी रहे सभी कहर में ।।
तू भी तन्हा मैं भी तन्हा चल खामोशी आज वो बात करें । दर्द जख्म दवा दगा जो कुछ भी सौगात में मिला , उसका दिल से धन्यवाद करें ।।
तेरा अहसास मुझे कभी तन्हा होने नहीं देता मेरा जख्म भी कैसा अजीब है दर्द तो होता है मगर किसी को दिखाई नहीं देता ।।
अब तो मुलाकात भी हमसे यूं खफा हो जाती । मैं उसके शहर नहीं जाता और वो मेरे शहर नहीं आती ।।
अच्छा कहो या कहो बुरा तुम्हारा हर नखरा सह जायेगी । यह मां है जनाब आज कल की महबूबा नहीं जो बेबफा हो जायेगी ।।
गुस्सा मायूसी और नखरो से कह दो कि अब हमने मनाना छोड़ दिया है।
क्यूं समझ बैठा कि इस मरहम का तुम ही एक भरम थे । बात तो ठीक है तुम्हारी वेवजह किसी को चाहना वो सब मेरे ही गलत करम थे ।।
मुझे मतलब की तराजू में न तोल ए-दिल-ए-सौदागर मैं आज भी उस पराये शख्स को खुद से ज्यादा चाहता हूं ।
ए चांद गुमान न कर हम तेरी चांदनी से भी नफ़रत करते हैं ।
फूल भी अब तो तेरे स्वागत में खिल उठे यह बहार भी देख सुहानी आयी । बस मेरी तकदीर ही तो मुझसे रूठी थी पर तू क्यूं न मिलने पगली मुझसे वापस आयी ।।
जुदा तुमने मुझे किया लेकिन खुश आज फिर भी तुम नहीं । आज चांद खफ़ा खफ़ा सा लग रहा है पास से न तो दूर से ही सही ।। दुःख तो बहुत है मुझे तेरे दर्द का अपना न तो पराया ही सही । काश ! मैं तेरे दर्द भी अपनी तरफ़ मोड़ पाता पर मैं बदकिस्मत तेरे हाथ की एक लकीर तक नहीं ।।
पता है ओ आसमां तुझे ज़मीं याद करती है । शायद चांद खिड़की पर खड़ा है जो मेरी आंखें बात करती हैं ।।
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