इतना तो ज़िंदगी में, न किसी की खलल पड़े, हँसने से हो सुकून, न रोने से कल पड़े, मुद्दत के बाद उसने, जो की लुत्फ़ की निगाह, जी खुश तो हो गया, मगर आँसू निकल पड़े।
बहुत लहरों को पकड़ा डूबने वाले के हाथों ने, यही बस एक दरिया का नजारा याद रहता है, मैं किस तेजी से जिन्दा हूँ मैं ये तो भूल जाता हूँ, नहीं आना है दुनिया में दोबारा याद रहता है।
तेरे हर गम को अपनी रूह में उतार लूँ, ज़िन्दगी अपनी तेरी चाहत में संवार लूँ, मुलाकात हो तुझसे कुछ इस तरह मेरी, सारी उम्र बस एक मुलाकात में गुज़ार लूँ।
तन्हाई कि रात कट ही जाएगी इतने भी हम मजबूर नहीं, दोहरा कर तेरी बातों को कभी हँस लेंगे कभी रो लेंगे।
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