तुम्हें मालूम था यह राह नहीं निकलती जहाँ पहुँचना मैंने तुम उस तरफ जा भी नहीं रहे थे फिर भी तुम चलते रहे मेरे साथ-साथ… - पद्मा सचदेव
बहुत ज़्यादा होगा भी तो क्या होगा , चुप रहने दो साहब नहीं तमाशा और होगा , मैं खामोश हू तो खामोश रहने दो , अगर बोल दिया तो तमाशा और होगा , यहॉ नए खिलाड़ी आ गए हैं बहुत , मैदान वही रहने दो नहीं तमाशा और होगा , हम जैसो पर चुपचाप पानी डालते रहो , कोई तड़प के मर गया तो तमाशा और होगा , मेरी बातों पर यकीन ना करो ना ही किसी को गौर होगा , मुझे चुप रहने दो साहब बोल दिया तो तमाशा और होगा, खैर भाई का छोटा भाई के लिखने से क्या होगा , चुप ही रहने दो साहब बोल दिया तो तमाशा और होगा...✍️ खैर छोड़ो....! ~भाई का छोटा भाई
वाह रे इंसान , मुझे तो इंसान कहने में शर्म आती है , दुष्कर्म करने वाले दरिंदों की मौत क्यों नहीं हो जाती हैं , क्यों इनको दिखती नहीं मां बहन बेटियां , आखिर इनके घर कौन पकाता है रोटिया , वाह रे इंसान , मुझे तो इंसान कहने में शर्म आती है , आखिर इन निलज्जो कि शर्म कहां जाती है , इंसानियत तो रही नहीं इंसान में, इंसान ही तुले हैं दूसरे इंसान की जान में, वाह रे इंसान , मुझे तो इंसान कहने में शर्म आती है , आखिर इन बलात्कारियों को फांसी क्यों नहीं हो जाती हैं, क्यों नहीं बनाते हो नए कड़े कानून , दुष्कर्मीयों का सीधे कर दो खून, वाह रे इंसान , मुझे तो इंसान कहने में शर्म आती है , पर पता नहीं बलात्कारियों को अपनी मां बहन क्यो ध्यान नहीं आती हैं , इनको ऐसी मौत दो कि , दुष्कर्म करने की सोचने से पहले ही डर जाएं , बलात्कारी यही सोचे कि दुष्कर्म करने से अच्छा है मर जाए , वाह रे इंसान , ऐसे इंसान को लिखने में मेरी कलम शर्माई, अब इन दरिंदों को क्या लिखूं मैं भाई का छोटा भाई...✍️ ~भाई का छोटा भाई
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