Schools in Nepal often lack appropriate funding and resources to adequately teach children. As English is an international language, it is becoming more and more of the required skill for job placement, educational advancement, and future success.teaching-volunteering-in-nepal Many classes are delivered in English by Nepali teachers, who frequently have only a basic knowledge of English themselves. Therefore, there is limited opportunity for Nepali students to expand their knowledge and use of the English language without direct contact with a teacher fluent in English. In teaching in schools program, volunteers participate in teaching activities in Nepali schools by delivering conversational English and reading classes to Nepali children. To teach English at a Nepali school you don’t need to have formal teaching qualifications. You will need a good command of written and spoken English, plenty of enthusiasm, creativity and a lot of patience. The first few days of volunteering are spent observing the Nepali teachers or other overseas volunteer teachers’ classes. After observing a few classes, volunteers will start supporting the local teachers and take part in some classes. Later, when the volunteers feel comfortable, they can start teaching classes of their own. Volunteers, who are professional certified teachers or have previous teaching experience and TEFL certification, may train the local teacher as most of the Nepali teachers lack training and experience. Children are approximately between five and 16 years of age and volunteers will teach three to four hours per day. Schools are open six days a week, Saturday being the day off. Class sizes range from ten to fifty students. Schools in Nepal often lack appropriate funding and resources to adequately teach the children. Many classes are delivered in English by Nepali teachers, who have only a basic teaching skill.
शिक्षक दिवस : ज्ञान के बीज बोता किसान है शिक्षक WD| 5 सितंबर, साल भर में एक दिन आने वाला वह पर्व, जो जिंदगी सिखाने वाले फरिश्तों के सजदे में सर झुकाने के लिए मनाया जाता है। 5 सितंबर, वह दिन जो डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के रूप में हर शिक्षक और विद्यार्थी मनाता है। और 5 सितंबर, वह दिन जो एक शिक्षक और विद्यार्थी के बीच बने ज्ञान सेतु को प्रेम और सम्मान की अभिव्यक्ति के रूप में सहेजने के लिए जाना जाता है। 5 सितंबर को जब हर साल हम शिक्षक दिवस मनाते हैं, तो अपने शिक्षकों को नमन करते हैं, उन्हें उपहार देते हैं, और बदले में उनसे ढेर सारा आशीष प्राप्त करते हैं। एक शिक्षक सामान्य होते हुए भी मनुष्य को महान बनाने की ताकत रखता है। जरा सोच कर देखें कि आज हम जो भी हैं, भाषा, सोच-विचार और व्यवहार से, क्या हमने बचपन में यही सीख अपने शिक्षक से नहीं ली थी। कैसे हम बचपन में स्कूल और शिक्षकों द्वारा बताई गई हर बात, घर आकर अपनी मां और पिता को बताते थे। कैसे हम अपने शिक्षक की आज्ञा का अक्षरश: पालन करते थे, तो उनके द्वारा दी जाने वाली सजा के डर से हम जो कुछ भी करते, उसकी बदौलत हम आज एक मुकाम पर खड़े हैं। शिक्षक उस किसान की तरह है, जो बचपन में कोमल मिट्टी से हमारे मस्तिष्क में, ज्ञान के असंख्य बीज बोता है। जिसकी फसल हम जिंदगी भर काटते हैेंं। किसी कुम्हार के समान वह ऊपर हें आकार देता है, और नीचे से हाथ लगाकर हमें संभाले रखता है। वह एक लोहार की तरह गर्म लोहे पर कितनी ही चोट करे, लेकिन उसका उद्देश्य हमें आकार देना ही होता है।> कभी सोचा है, कि अगर शिक्षक हमें पढ़ना नहीं सिखाते, तो क्या हम अपने शब्दों में आत्मविश्वास भर पाते ..? क्या हम अपने उच्चारण को प्रभावी बना पाते..? छोटी-छोटी गलतियों पर शिक्षक द्वारा डांटे जाने पर अगर गलतियां नहीं सुधारते, तो क्या सही और गलत में अंतर जान पाते..? उनके द्वारा कहानियों के माध्यम से दी गई छोटी-छोटी सीख में जीवन के कितने सबक छुपे हुए थे, यह आज हम समझ पाते हैं। गलत, क्यों गलत है, सही क्यों है सही, इन कहानियों किस्सों से ही तो हम अपने छोटे मस्तिष्क में बड़ी-बड़ी सीखों को स्थान दे पाए। जरा सोचिए अगर एक गलती पर बार-बार दोहराने की सजा नहीं मिलती तो क्या, कभी आगे बढ़ पाते जीवन में..? वहीं अटके न रह जाते। शुक्रिया और माफी का सबक हो, या सुबह की प्रार्थना हर छोटा सबक जो आज जिंदगी की जरूरत है, वो बीज शिक्षक ने ही बोया था, जो अंकुरित होकर आज फल देने वाला वृक्ष बन चुका है। ऐसे न जाने कितने बीज, एक शिक्षक बोता है, बगैर फल की अपेक्षा किए, और बन जाते हैं हरे-भरे बाग ...सकारात्मकता की छांव और सफलता के फलों से लदे हुए...लेकिन फिर भी उस शिक्षक को किसी फल की चाह नहीं, सिवाए आपके सम्मान और गौरवान्वित करने वाले भाव के...।
शिक्षक दिवस : रोचक जानकारियां WD| भारत में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है जबकि अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस का आयोजन 5 अक्टूबर को होता है। रोचक तथ्य यह है कि शिक्षक दिवस दुनिया भर में मनाया जाता है लेकिन सबने इसके लिए एक अलग दिन निर्धारित किया है। कुछ देशों में इस दिन अवकाश रहता है तो कहीं-कहीं यह कामकाजी दिन ही रहता है। > > यूनेस्को ने 5 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस घोषित किया था। साल 1994 से ही इसे मनाया जा रहा है। शिक्षकों के प्रति सहयोग को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शिक्षकों के महत्व के प्रति जागरूकता लाने के मकसद से इसकी शुरुआत की गई थी। भारत में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान में 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इस दिन देश के द्वितीय राष्ट्रपति रहे राधाकृष्णन का जन्मदिवस होता है।
शिक्षा का विकास प्रारंभ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी शिक्षा प्रणाली के विकास के प्रति गंभीर नहीं थी क्योकि उनका प्राथमिक उद्देश्य व्यापार करना और लाभ कमाना था| भारत में शासन करने के लिए उन्होंने उच्च व मध्यम वर्ग के एक छोटे से हिस्से को शिक्षित करने की योजना बनायीं ताकि एक ऐसा वर्ग तैयार किया जाये जो रक्त और रंग से तो भारतीय हो लेकिन अपनी पसंद और व्यवहार के मामले में अंग्रेजों के समान हो और सरकार व जनता के बीच आपसी बातचीत को संभव शिक्षा एक ऐसा शक्तिशाली औजार है जो स्वतंत्रता के स्वर्णिम द्वार को खोलकर दुनिया को बदल सकने की क्षमता रखता है| ब्रिटिशों के आगमन और उनकी नीतियों व उपायों के कारण परंपरागत भारतीय शिक्षा प्रणाली की विरासत का पतन हो गया और अधीनस्थ वर्ग के निर्माण हेतु अंग्रेजियत से युक्त शिक्षा प्रणाली का आरम्भ किया गया| प्रारंभ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी शिक्षा प्रणाली के विकास के प्रति गंभीर नहीं थी क्योकि उनका प्राथमिक उद्देश्य व्यापार करना और लाभ कमाना था| भारत में शासन करने के लिए उन्होंने उच्च व मध्यम वर्ग के एक छोटे से हिस्से को शिक्षित करने की योजना बनायीं ताकि एक ऐसा वर्ग तैयार किया जाये जो रक्त और रंग से तो भारतीय हो लेकिन अपनी पसंद और व्यवहार के मामले में अंग्रेजों के समान हो और सरकार व जनता के बीच आपसी बातचीत को संभव बना सके| इसे ‘निस्पंदन सिद्धांत’ की संज्ञा दी गयी| शिक्षा के विकास हेतु ब्रिटिशों ने निम्नलिखित कदम उठाये- शिक्षा और 1813 का अधिनियम • चार्ल्स ग्रांट और विलियम विल्बरफोर्स,जोकि मिशनरी कार्यकर्ता थे ,ने ब्रिटिशों पर अहस्तक्षेप की नीति को त्यागने और अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार हेतु दबाव डाला ताकि पाश्चात्य साहित्य को पढ़ा जा सके और ईसाईयत का प्रचार हो सके| अतः ब्रिटिश संसद ने 1813 के अधिनियम में यह प्रावधान किया की ‘सपरिषद गवर्नर जनरल’ एक लाख रुपये शिक्षा के विकास हेतु खर्च कर सकते है और ईसाई मिशनरियों को भारत में अपने धर्म के प्रचार-प्रसार की अनुमति प्रदान कर दी| • इस अधिनियम का इस दृष्टि से महत्व है कि यह पहली बार था जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में शिक्षा के विकास हेतु कदम उठाया | • राजा राममोहन राय के प्रयासों से पाश्चात्य शिक्षा प्रदान करने के लिए ‘कलकत्ता कॉलेज’ की स्थापना की गयी | कलकत्ता में तीन संस्कृत कॉलेज भी खोले गए| जन निर्देश हेतु सामान्य समिति,1823 इस समिति का गठन भारत में शिक्षा के विकास की समीक्षा के लिए किया गया था| इस समिति में प्राच्यवादियों का बाहुल्य था,जोकि अंग्रेजी के बजाय प्राच्य शिक्षा के बहुत बड़े समर्थक थे |इन्होने ब्रिटिश सरकार पर पाश्चात्य शिक्षा के प्रोत्साहन हेतु दबाव डाला परिणामस्वरूप भारत में शिक्षा का प्रसार प्राच्यवाद और अंग्रेजी शिक्षा के भंवर में फंस गयी |अंततः मैकाले के प्रस्ताव के आने से ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली का स्वरुप स्पष्ट हो सका| लॉर्ड मैकाले की शिक्षा प्रणाली,1835 • यह भारत में शिक्षा प्रणाली की स्थापना का एक प्रयास था जिसमें समाज के केवल उच्च वर्ग को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्रदान करने की बात थी| • फारसी की जगह अंग्रेजी को न्यायालयों की भाषा बना दिया गया | • अंग्रेजी पुस्तकों की छपाई मुफ्त में होने लगी और उन्हें सस्ते दामों पर बेचा जाने लगा | • प्राच्य शिक्षा की अपेक्षा अंग्रेजी शिक्षा को अधिक अनुदान मिलने लगा | • 1849 में बेथुन ने ‘बेथुन स्कूल’ की स्थापना की | • पूसा (बिहार) में कृषि संस्थान खोला गया | • रुड़की में इंजीनियरिंग संस्थान खोला गया| वुड डिस्पैच ,1854 • इसे ‘भारत में अंग्रेजी शिक्षा का मैग्नाकार्टा’ कहा जाता है क्योकि इसमें भारत में शिक्षा के प्रसार के लिए समन्वित योजना प्रस्तुत की गयी| • इसमें जनता में शिक्षा के प्रसार की जिम्मेदारी राज्य को सौंपने की बात कही गयी| • इसने शिक्षा के एक पदानुक्रम का प्रस्ताव दिया-सबसे निचले स्तर पर वर्नाकुलर प्राथमिक स्कूल, जिला स्तर पर वर्नाकुलर हाईस्कूल और सम्बद्ध कॉलेज ,और कलकत्ता, मद्रास व बम्बई प्रेसिडेंसी के सम्बद्ध विश्वविद्यालय | • इसने उच्च शिक्षा हेतु अंग्रेजी माध्यम और स्कूल शिक्षा के लिए देशी भाषा (वर्नाकुलर) माध्यम की वकालत की| हंटर आयोग(1882-83) • इस आयोग का गठन डब्लू.डब्लू.हंटर की अध्यक्षता में 1854 के वुड डिस्पैच के तहत विकास की समीक्षा हेतु किया गया था| • इसने प्राथमिक और सेकेंडरी शिक्षा में सुधार व प्रसार में सरकार की भूमिका को महत्व दिया | • इसने शिक्षा के नियंत्रण की जिम्मेदारी जिला और म्युनिसिपल बोर्डों को देने की बात कही| • इसने सेकेंडरी शिक्षा के दो रूपों में विभाजन किया –विश्विद्यालय तक साहित्यिक;वाणिज्यिक भविष्य हेतु रोजगारपरक शिक्षा |
5 सितंबर को ही क्यों शिक्षक दिवस मनाया जाता है शिक्षक या गुरु का जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान होता है. इस दिन को सम्पूर्ण भारत में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस लेख में यह अध्ययन करेंगे कि 5 सितंबर को ही क्यों शिक्षक दिवस मनाया जाता हैं. इसका क्या महत्व हैं और कैसे यह भारत में मनाया जाता है. जीवन में सफल होने के लिए शिक्षा सबसे ज्यादा जरुरी है. शिक्षक देश के भविष्य और युवाओं के जीवन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के अवसर पर उनकी स्मृति में सम्पूर्ण भारत में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस (Teacher’s Day) मनाया जाता है. वह एक महान शिक्षक होने के साथ-साथ स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपती तथा दूसरे राष्ट्रपति थे. गुरु का हर एक के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है और इसलिए कहा गया है क सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक और शिक्षक थे और शिक्षा में उनका काफी लगाव था, इसलिए सम्पूर्ण भारत में सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में अच्चा करने वाले छात्रों को पुरस्कार दिया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि गुरु अर्थार्त शिक्षक के बिना सही रास्तों पर नहीं चला जा सकता है. वह मार्गदर्शन करते है. तभी तो शिक्षक छात्रों को अपने नियमों में बांधकर अच्चा इंसान बनाते हैं और सही मार्ग प्रशस्त करते रहते है. इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि जन्म दाता से बढकर महत्व शिक्षक का होता है क्योंकि ज्ञान ही इंसान को व्यक्ति बनाता है, जीने योग्य जीवन देता है दुनिया के किन देशों में टीचर को सबसे ज्यादा सैलरी मिलती है? डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 में तमिलनाडु के तिरुतनी गॉव में एक गरीब परिवार में हुआ था. आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद पढाई-लिखाई में उनकी काफी रुची थी. आरंभिक शिक्षा इनकी तिरूवल्लुर के गौड़ी स्कूल और तिरूपति मिशन स्कूल में हुई थी. फिर मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से उन्होंने अपनी पढाई पूरी की थी. 1916 में उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. किया और मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में इसी विषय के सहायक प्राध्यापक का पद संभाला. 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह 1903 में सिवाकामु के साथ हो गया था. वर्ष 1954 में शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए उन्हें भारत सम्मान से नवाजा गया. हम आपको बता दें कि राजनीति में आने से पहले उन्होंने अपने जीवन के 40 साल अध्यापन को दिए थे. उनका मानना था कि बिना शिक्षा के इंसान कभी भी मंजिल तक नहीं पहुंच सकता है. इसलिए इंसान के जीवन में एक शिक्षक होना बहुत जरुरी है. भारत में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद राधाकृष्णन को जवाहरलाल नेहरु ने राजदूत के रूप में सोवियत संघ के साथ राजनयिक कार्यों की पूर्ति करने का आग्रह किया. 1952 तक वह इसी पद पर रहे और उसके बाद उन्हें उपराष्ट्रपती नियुक्त किया गया. राजेन्द्र प्रसाद का कार्यकाल 1962 में समाप्त होने के बाद उनको भारत का दूसरा राष्ट्रपति बनाया गया. 17 अप्रैल 1975 में लंबे समय तक बीमार रहने के बाद उनका निधन हो गया. भारत में शिक्षक दिवस कैसे मनाया जाता है इस दिन स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती हैं, उत्सव, कार्यक्रम आदि होते हैं. शिक्षक अपने टीचर्स को गिफ्ट देते हैं. कई प्रकार कि सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती है जिसमे छात्र और शिक्षक दोनों ही भाग लेते है. गुरु-शिष्य परम्परा को कायम रखने का संकल्प लेते हैं. यह दिन शिक्षक और छात्रों अर्थार्थ यू कहें तो समाज के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होता है. इसी दिन शिक्षको को मान-सम्मान देकर उनके काम की सराहना करते है. एक शिक्षक के बिना कोई भी डॉक्टर, इंजीनियर आदि नहीं बन सकता है. शिक्षा का असली ज्ञान सिर्फ एक शिक्षक ही दे सकता है. शिक्षक दिवस को मनाने कि तिथियां अलग-अलग देशों में भिन्न हैं. क्या आप जानते हैं कि यूनेस्को ने आधिकारिक रूप में 'शिक्षक दिवस' को मनाने के लिए 5 अक्टूबर को चुना. अब इसलिए 100 से अधिक देशों में यह 'शिक्षक दिवस' के रूप में मनाया जाता है. अंत में यह कहना गलत नहीं होगा कि 5 सितंबर का दिन डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिन के रूप में ही नहीं बल्कि शिक्षकों के प्रति सम्मान और लोगों में शिक्षा के प्रति चेतना जगाने के लिए भी मनाया जाता है.
विश्व शिक्षक दिवस (अंग्रेज़ी:World Teacher's day) 5 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में मनाया जाता है।[1][2] इस दिन आध्यापकों को सामान्य रूप से और कतिपय कार्यरत एवं सेवानिवृत्त शिक्षकों को उनके विशेष योगदान के लिये सम्मानित किया जाता है। इसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा साल 1966 में यूनेस्को और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की हुई उस संयुक्त बैठक को याद करने के लिये मनाया जाता है जिसमें अध्यापकों की स्थिति पर चर्चा हुई थी और इसके लिये सुझाव प्रस्तुत किये गये थे।[3] अतः इसे 1994 के बाद से प्रतिवर्ष लगभग सौ से अधिक देशों में मनाया जा रहा है और इस प्रकार वर्ष 2014 में यह 20वाँ विश्व शिक्षक दिवस होगा। इस अवसर को एजुकेशन इंटरनेशनल नामक संस्था "गुणवत्ता परक शिक्षा के लिये एकजुट हों" के नारे के साथ मनाने जा रही है।[4] एक अन्य संस्था इसे "भविष्य में निवेश करें, शिक्षकों में निवेश करें" के विषय के साथ मनाने की तैयारी मे अलग-अलग देशों में शिक्षक दिवस अलग-अलग तारीखों पर मनाये जाते हैं। भारत में यह भूतपूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन 5 सितंबर को मनाया जाता है। चीन में 1931 में शिक्षक दिवस की शुरूआत की गई थी और बाद में 1939 में कन्फ्यूशियस के जन्म दिन, 27 अगस्त को शिक्षक दिवस घोषित किया गया लेकिन 1951 में इसे रद कर दिया गया। फिर 1985 में 10 सितम्बर को शिक्षक दिवस घोषित किया गया लेकिन वर्तमान समय में ज्यादातर चीनी नागरिक चाहते हैं कि कन्फ्यूशियस का जन्म दिन ही शिक्षक दिवस हो।[6] इसी तरह रूस में 1965 से 1994 तक अक्टूबर महीने के पहले रविवार के दिन शिक्षक दिवस मनाया जाता था। जब साल 1994 से विश्व शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को मनाया जाना शुरू हुआ तब इसके साथ समन्वय बिठाने के लिये इसे इसी दिन मनाया जाने लगा।
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