मैं तारीफ तारीफ करता था उसकी बिंदी की ! मेरे लफ्ज कम पड़ गए जब उसने झुमके पहन लिए !!
यूँ दर-ब-दर भटकना अच्छा नही ग़ालिब तुम्हे कौनसा इस शहर में पहचान बनानी है
अकेले ही खुश है खिताब हमे आशिक़ मिजाज ना दे, चली जा रही हूं अपनी तनाहियो से बात करता है इश्क मुझे पीछे से आवाज ना दे
मानव का रचा हुया सूरज मानव को भाप बनाकर सोख गया। पत्थर पर लिखी हुई यह जली हुई छाया मानव की साखी है ~ अज्ञेय ("हिरोशिमा")
तुम्हें मालूम था यह राह नहीं निकलती जहाँ पहुँचना मैंने तुम उस तरफ जा भी नहीं रहे थे फिर भी तुम चलते रहे मेरे साथ-साथ… - पद्मा सचदेव
बहुत ज़्यादा होगा भी तो क्या होगा , चुप रहने दो साहब नहीं तमाशा और होगा , मैं खामोश हू तो खामोश रहने दो , अगर बोल दिया तो तमाशा और होगा , यहॉ नए खिलाड़ी आ गए हैं बहुत , मैदान वही रहने दो नहीं तमाशा और होगा , हम जैसो पर चुपचाप पानी डालते रहो , कोई तड़प के मर गया तो तमाशा और होगा , मेरी बातों पर यकीन ना करो ना ही किसी को गौर होगा , मुझे चुप रहने दो साहब बोल दिया तो तमाशा और होगा, खैर भाई का छोटा भाई के लिखने से क्या होगा , चुप ही रहने दो साहब बोल दिया तो तमाशा और होगा...✍️ खैर छोड़ो....! ~भाई का छोटा भाई
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