Jab dard mai yaar na ho
मुख परस्ती से क्या हमें अब आजाद कर दोगे, मैं कुछ लाया हूं घर से क्या तुम स्वाद भर दोगे। अरविंद जिद्दत से चाहा है तुझे बदलते जमाने में, मुझे जीना या मरना है क्या यही इंसाफ कर दोगे।।
मै हाथ में कलम लिए लिखने अगर बैठूॅं तो अल्फाजो की बाड आ जाए, तेरे साथ गुजारे हुए हर एक पल को याद करने बैठू तो पता ही ना चले कब सुबह से लेकर शाम हो जाए..!
फिर किसी मोड़ पर मिल जाऊं तो मुंह फेर लेना तुम , पुराना इश्क़ हूं फिर उभरा तो कयामत होगी ।
सिलसिला यूं ही चलने देंगे शायरी का, हम भी तो देखें....... कब तक मेरे अल्फाज तेरे दिल तक नहीं पहुंचते।।
मेरे अंदाज को समझना हर किसी की बस में नहीं मै वो आशिक हूं जो मोहब्बतो का समंदर के कर चलता हूं
मैं रोज़ लहू के दीप जलाऊंगा ..ऐ इश्क ,,,, तू एक बार अपनी मज़ार तो बता दे .. ??
मेरी हर शायरी कितनी भी उम्दा हो ,,, मगर अधूरी है तेरी तारीफ के बिना,,,
दिसंबर बीत जाने से फ़र्क पड़ता नहीं मुझको! तेरा मेरा रिश्ता दिल का रिश्ता है उसे पुरानी साल नये साल से क्या लेना! Yashraj
दिल चाहता है आज लिखूँ,, कुछ इस क़दर गहरा......... कि पढ़ तो पायें सभी मग़र,, समझो सिर्फ़ तुम.... Yashraj
झुका ली उन्होंने नज़रे जब मेरा नाम आया , इश्क़ मेरा नाकाम ही सही पर कही तो काम आया l l Yashraj
ना जाने किस हुनर को शायरी कहती हो तुम हम तो वो लिखते हैं जो तुमसे कह नहीं पाते .... Yashraj
चल सनम मोहब्बत करने का हुनर तुझे सिखाता हूँ इश्क़ तुम शुरू करो निभाकर में दिखाता हूँ ।।
बहुत देता हैं तू गवाहियाँ और उसकी सफ़ाईयाँ, समझ नहीं आता तू मेरा दिल हैं या उसका वकील..