मैंने सुना था कलियुग आयेगा ऐसा आयेगा और इतनी जल्दी यह कभी नहीं सोचा था
यूँ मोहब्बत में निखरता है कहाँ दीवाना शख़्स हर कोई वफ़ा पाकर बिखर जाता है
रात यूँही ढलती जाए जाम जाम से जाम टकराते जाए ना कल की फिक्र हो ना आजका पता मेरे दोस्तों की मैफिल में सब लापता हो !
लग गयी आग उस आशियाने में जिसमें तू कभी रहती थी ।
मुझे तू याद क्यू आती है वे दिली बेरहम तेरी यादें मुझे क्यूं नहीं कुछ बताती हैं । जाहिल सा गया है इस तरह कुछ आवारा पल अब तो पागल रात भी हंसकर मुझे जिंदा लाश बताती है।।
दुनिया को छोड़कर एक तुझे ही वे वजह अपनाया । फिर भी मैं तुझे सस्ता लगूं तो मैंने क्या पाया ।।
उम्मीदों की गलियों में कोई बैठा ले रहा सांस है । वो अधूरा सा दिखने वाला सपना क्यूं लगता दूर होकर भी पास है ।
मुर्दे की खामोशी कुछ ऐसी है जब रूह ने ही साथ छोड़ दिया तो अपनों से ये शिकायत कैसी है ।
नशा इश्क का हो या धूम्र दारु का एकदिन बर्बाद हो जाउंगा । यूं रोज सिंगार की तरह जलकर एक दिन धुआं हो जाऊंगा ।।
मुफ्त में मिलने मोहब्बत को कैसा पाकर खोना था जब मैं उसका कभी था ही नहीं तो फिर किस बात का रोना था । शायद मजबूरी ही शामिल थी उसकी तबीयत बदलने में मेरा क्या है वो आबाद रहे मुझे तो यूं ही मज़ा आता है अब तन्हा गुजरने में ।।
एक तो मुलाकात बंद ऊपर से ख्याल तुम्हारा । यह बात मालूम होते हुए भी अक्सर भूल जाता हूं दोबारा ।।
वह मुझसे बिछड़कर जमाने भर के लोगों सा जा मिला । उसे उस जैसे तो बहुत मिले पर मुझसा कोई न मिला ।।
जब मैंने तुम्हें पाया ही नहीं तो खोने का दर्द क्यूं होता है ।
कुछ बिखर से गये कुछ टूट से गये वो सपने ही तो थे जो मेरी हाथों की लकीरों से कुछ छूट से गये ।।
एक दिन मंजिल भी मिल जायेगी तुम परेशान न होना । चलते रहो इन पत्थरों पर बस शर्त है कभी दिल से हार न होना ।।
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