तेरा अहसास मुझे कभी तन्हा होने नहीं देता मेरा जख्म भी कैसा अजीब है दर्द तो होता है मगर किसी को दिखाई नहीं देता ।।
अब तो मुलाकात भी हमसे यूं खफा हो जाती । मैं उसके शहर नहीं जाता और वो मेरे शहर नहीं आती ।।
अच्छा कहो या कहो बुरा तुम्हारा हर नखरा सह जायेगी । यह मां है जनाब आज कल की महबूबा नहीं जो बेबफा हो जायेगी ।।
गुस्सा मायूसी और नखरो से कह दो कि अब हमने मनाना छोड़ दिया है।
क्यूं समझ बैठा कि इस मरहम का तुम ही एक भरम थे । बात तो ठीक है तुम्हारी वेवजह किसी को चाहना वो सब मेरे ही गलत करम थे ।।
मुझे मतलब की तराजू में न तोल ए-दिल-ए-सौदागर मैं आज भी उस पराये शख्स को खुद से ज्यादा चाहता हूं ।
ए चांद गुमान न कर हम तेरी चांदनी से भी नफ़रत करते हैं ।
फूल भी अब तो तेरे स्वागत में खिल उठे यह बहार भी देख सुहानी आयी । बस मेरी तकदीर ही तो मुझसे रूठी थी पर तू क्यूं न मिलने पगली मुझसे वापस आयी ।।
जुदा तुमने मुझे किया लेकिन खुश आज फिर भी तुम नहीं । आज चांद खफ़ा खफ़ा सा लग रहा है पास से न तो दूर से ही सही ।। दुःख तो बहुत है मुझे तेरे दर्द का अपना न तो पराया ही सही । काश ! मैं तेरे दर्द भी अपनी तरफ़ मोड़ पाता पर मैं बदकिस्मत तेरे हाथ की एक लकीर तक नहीं ।।
पता है ओ आसमां तुझे ज़मीं याद करती है । शायद चांद खिड़की पर खड़ा है जो मेरी आंखें बात करती हैं ।।
तेरे इश्क का कैसा यह असर है । जिस्म तो यहां है पर जां किधर है ।।
शायद ही ऐसा कोई लम्हा गुज़रा होगा और शायद ही ऐसी मेरी कोई ग़ज़ल गयी । ज़िक्र तुम्हारा छूटा होगा पर फिक्र तुम्हारी कभी छूटी न गयी ।।
तुम्हारे जख्मों पर मरहम लगाकर दफा हो जाऊं । मैं सोच रहा हूं तुम भी खामोश रहना और अब मैं भी खफा हो जाऊं ,।।
कभी गुसार तो कभी करीब लिख रहा हूं । मैं तेरी कड़ियों की एक जरीब लिख रहा हूं ।।
खाली से दिल में तेरी वो हंसी आज भी दिल की दीवारों को हिला देती है हर दिन तुझसे दूर भागते है कम्बख्त ये राते हर बार तेरी याद से मिला देती है
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