अक्सर निकल जाता हूं रातों में, उन पुरानी गलियों में, उस खाली मकान को देखने।
दुनिया को छोड़कर एक तुझे ही वे वजह अपनाया । फिर भी मैं तुझे सस्ता लगूं तो मैंने क्या पाया ।।
मुर्दे की खामोशी कुछ ऐसी है जब रूह ने ही साथ छोड़ दिया तो अपनों से ये शिकायत कैसी है ।
मुफ्त में मिलने मोहब्बत को कैसा पाकर खोना था जब मैं उसका कभी था ही नहीं तो फिर किस बात का रोना था । शायद मजबूरी ही शामिल थी उसकी तबीयत बदलने में मेरा क्या है वो आबाद रहे मुझे तो यूं ही मज़ा आता है अब तन्हा गुजरने में ।।
वह मुझसे बिछड़कर जमाने भर के लोगों सा जा मिला । उसे उस जैसे तो बहुत मिले पर मुझसा कोई न मिला ।।
कुछ बिखर से गये कुछ टूट से गये वो सपने ही तो थे जो मेरी हाथों की लकीरों से कुछ छूट से गये ।।
तेरा अहसास मुझे कभी तन्हा होने नहीं देता मेरा जख्म भी कैसा अजीब है दर्द तो होता है मगर किसी को दिखाई नहीं देता ।।
अब तो मुलाकात भी हमसे यूं खफा हो जाती । मैं उसके शहर नहीं जाता और वो मेरे शहर नहीं आती ।।
फूल भी अब तो तेरे स्वागत में खिल उठे यह बहार भी देख सुहानी आयी । बस मेरी तकदीर ही तो मुझसे रूठी थी पर तू क्यूं न मिलने पगली मुझसे वापस आयी ।।
पता है ओ आसमां तुझे ज़मीं याद करती है । शायद चांद खिड़की पर खड़ा है जो मेरी आंखें बात करती हैं ।।
तेरे इश्क का कैसा यह असर है । जिस्म तो यहां है पर जां किधर है ।।
कभी गुसार तो कभी करीब लिख रहा हूं । मैं तेरी कड़ियों की एक जरीब लिख रहा हूं ।।
Dur rahne wale ek baat dhyan rakhna, Agar mera khayal aaye to apna khayal rakhna
बिना जिस्म को छूए कोई रूह से लिपट जाए वही ईश्क है
Mout se to diniya mar jati hai Aashiq to pyaar se hi mar jate hai।
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