मेरा मन ये कहता है कह दूं मैं जमाने से एक चुभन सी होती इश्क को छुपाने से, जब से प्यार कि मैंने एक शमा जलाई है तब से डर नहीं लगता आंधियों के आने से।।
इस शहर से था एकदम अनजान चला आया बनने के लिए दिल का मेहमान चला आया, कितनी थी कशिश यारों उसकी मोहब्बत में मजबूर होकर के यशराज चला आया।।
कि तुम को देखा तो सांसो ने मुझसे कहा ये वही है जिसे था तराशा बहोत, शब्द हैरान है व्यक्त कैसे करें होठ कैसे कहें मैं हूं प्यासा बहोत, मैं भी खुद को समंदर समझने लगु तुम मिल जाओ आकर नदी की तरह।।
की मेरी आंखों का प्रस्ताव ठुकरा के तुम मुझसे यूं ना मिलो अजनबी की तरह, अपनी होठों से मुझको लगा लो अगर बजे उठूंगा मैं फिर बांसुरी की तरह।।
Teri yaad bhut aati hai yaar ...... ............,........,.....,
आज मेरी "रूह" ने मुझें बड़ा अज़ीब-सा-ताना दिया... कहा कि yash लिखते तो बहोत ख़ूब हो कभी "अमल भी किया करो..!😔
जो रोक रहे हैं तेरे रास्ते हर कदम पर तेरे अपने कहा होंगे, अगर तू चलता रहा दुनिया के कहने पर, तो सोच तेरे खुद के सपने कहां होंगे, मैं ये नहीं कहता तू हर किसी को छोड़ और किसी से भी तेरी बात ना हो ,पर उनसे जरूर दूर हो जा जिसके तेरे लिए सही खयालात ना हो।
की सुना है दुश्मन के घर में yash सभी के चेहरे उतर गए हैं ,वह अपनी शोहरत से खुश नहीं हैं ,वह मेरी इज्जत से डर गए हैं!
मैं आज दुआओं का असर देख रहा हूं ,हर शिंत मोहब्बत के सजर देख रहा हूं ,आंगन में उतर आए हैं ये चांद सितारे ,खुशियों से चमकता हुआ घर देख रहा हूं।
इस प्यार का अंदाज कुछ ऐसा है, क्या बताएं ये राज कैसा है और कौन कहता है तुम चांद जैसी हो, सच तो यह है चांद तुम जैसा है..
मैं रोज़ लहू के दीप जलाऊंगा ..ऐ इश्क ,,,, तू एक बार अपनी मज़ार तो बता दे .. ??
मुश्किल इतनी भी न थी राह अपनी मोहब्बत की यारों, अफ़सोस उनकी फितरत और नियत ही कुछ ऐसी थी..
आंखों को देखकर इंतजार का हुनर चला गया .. . चाहा था एक शख्स को ..... ना जाने किधर चला गया ...
नजरो का क्या कसुर जो दिल्लगी तुम से हो गई! तुम हो ही इतने प्यारे कि मुहब्बत तुमसे हो गई !
तेरे जिक्र के बिना कैसे, जिंदगी की कहानी लिखूँ.! तुझे इश्क लिखूँ, वफा लिखूँ. या अपनी जिन्दगानी लिखूँ..
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