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इरादतन नहीं तोड़ा ये जानता हूँ मैं लेकिन मेरे अपनों ने मुझे तोड़ा भी बहुत है. तोड़ा भी बहुत है... लेकिन मेरे अपनो नें... चलता रहा मैं धूप में संग संग जिनके रास्तों में तनहा अपनों ने छोड़ा भी बहुत है. छोड़ा भी बहुत है... लेकिन मेरे अपनो ने..
सोंच रहा था आऊँ... पर कैसे? लेकिन तुम आवाज़ देते रहना जब जब मेरी याद आये जब भी मौका मिले चाहे जैसे. जिस दिन टकरा जाएगी तुम्हारी पुकार बाधाओं की जंजीर से, टूट जाएंगे बंधन
"अपनों के अवरोध मिले, हर वक्त रवानी वही रही साँसो में तुफानों की रफ़्तार पुरानी वही रही लाख सिखाया दुनिया ने, हमको भी कारोबार मगर धोखे खाते रहे और मन की नादानी वही रही...!"
माँग मुझ से है ख़ास दुनिया की, लफ्ज़ मेरे हैं आस दुनिया की , कतरा-कतरा है शायरी मेरी , दरिया-दरिया है प्यास दुनिया की
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