Har pal najrein unhe dekhna chahe to aankho ka kya kasoor ? Har pal khusbu unki hi aaye toh saanson ka kya kasoor ? Waise toh sapne kabhi puch kar nahi aate, Par agar sapne hi unke aaye toh raato ka kya kasoor ?
मां तो जन्नत का फूल है, प्यार करना उसका उसूल है, दुनिया की मोह्ब्बत फिजूल है, मां की हर दुआ कबूल है, मां को नाराज करना इंसान तेरी भूल है, मां के कदमो की मिट्टी जन्नत की धूल है!
उनको ये शिकायत है कि मैं बेवफाई पे नहीं लिखता, और मैं सोचता हूं कि मैं उनकी रुसवाई पे नहीं लिखता.. ख़ुद अपने से ज्यादा बुरा जमाने में कौन है? मैं इसलिए औरों की बुराई पे नहीं लिखता.. कुछ तो आदत से मजबूर हैं और कुछ फितरतों की पसंद है जख्म कितने भी गहरे हों, मैं उनकी दुहाई पे नहीं लिखता…..!!
इस बनावटी दुनिया में कुछ सीधा सच्चा रहने दो, तन वयस्क हो जाए चाहे, दिल तो बच्चा रहने दो, नियम कायदो की भट्टी में पकी तो जल्दी चटकेगी, मन की मिट्टी को थोडा सा तो गीला, कच्चा रहने दो| ................................................................... एक पहचान हज़ारो दोस्त बना देती हैं, एक मुस्कान हज़ारो गम भुला देती हैं, ज़िंदगी के सफ़र मे संभाल कर चलना, एक ग़लती हज़ारो सपने जला कर राख बना देती है…
कागज़ के नोटों से आखिर किस किस को खरीदोगे, किस्मत परखने के लिए यहाँ आज भी सिक्का ही उछाला जाता है! ...................................................... कहीं बेहतर है तेरी अमीरी से मुफलिसी मेरी, चंद सिक्कों के लिए तुने क्या नहीं खोया है, माना नहीं है मखमल का बिछोना मेरे पास, पर तु ये बता, कितनी राते चैन से सोया है।
किस्मत पर नाज़ है तो वजह तेरी रहमत.. खुशियां जो पास है तो वजह तेरी रहमत.. मेरे अपने मेरे साथ है तो वजह तेरी रहमत.. मैं तुझसे मोहब्बत की तलब कैसे न करूँ.. चलती जो ये सांस है तो वजह तेरी रहमत..
जिंदगी तुझसे हर कदम पर समझौता क्यों किया जाय, शौक जीने का है मगर इतना भी नहीं कि मर मर कर जिया जाए। जब जलेबी की तरह उलझ ही रही है तू ए जिंदगी तो फिर क्यों न तुझे चाशनी में डुबा कर मजा ले ही लिया जाए!
जिंदगी देने वाले, मरता छोड़ गये, अपनापन जताने वाले तन्हा छोड़ गये, जब पड़ी जरूरत हमें अपने हमसफर की, वो जो साथ चलने वाले रास्ता मोड़ गये।
चलो! थोड़ी मुस्कुराहट बाँटते है.. थोड़ा दुख तकलीफों को डाँटते है.. क्या पता ये साँसे चोर कब तक हैं? क्या पता ‘जिन्दगी की चरखी’ में ड़ोर कब तक हैं?
अपनी जिंदगी के अलग असूल हैं, यार की खातिर तो कांटे भी कबूल हैं, हंस कर चल दूं कांच के टुकड़ों पर भी, अगर यार कहे, यह मेरे बिछाए हुए फूल हैं.
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