जिसको पाना है,उसको खोना है, हादसा एक दिन ये होना है। फर्श पर हो या अर्श पर कोई, सब को इक दिन जमीं पर होना है। चाहे कितना अजीम हो इन्सां, वक़्त के हाथ का खिलौना है। दिल पे जो दाग है मलामत का, वो हमे आंसुओं से धोना है। चार दिन हँस के काट लो यारो, जिन्दगी उम्र भर का रोना है।
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा, तेरे आगे ! ये देख कि क्या रंग है तेरा, मेरे आगे !!
जन्नतें मिलती है कहाँ, ख्वाहिशें कब पूरी होती है ! लो आ पहुचे उस मकां तक, फिर भी बात अधूरी होती है !!
नेह लगा तो नैहर छूटा , पिया मिले बिछुड़ी सखियाँ रे ! उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे !! देखा जो ससुराल पहुंचकर , तो दुनिया ही न्यारी थी ! फूलों सा था देश हरा , पर कांटो की फुलवारी थी !!!
तुम जलाकर दिये, मुँह छुपाते रहे, चाँद घूँघट घटा का उठाता रहा ! तुम न आए, हमें ही बुलाना पड़ा, मंदिरों में सुबह-शाम जाना पड़ा !! लाख बातें कहीं मूर्तियाँ चुप रहीं, बस तुम्हारे लिए सर झुकाता रहा ! दुख यही है हमें तुम रहे सामने, पर दिया प्यार का, काँपता रह गया !!
रोक देना मेरी मैय्यत को उसके घर के सामने ! लोग पूछे तो कह देना की कनधे बदल रहे है !!
कश्ती है पुरानी मगर दरिया बदल गया, मेरी तलाश का भी तो ज़रिया बदल गया! ना शक्ल ही बदली न ही बदला मेरा किरदार, बस लोगों के देखने का नज़रिया बदल गया! हम जिस दीए के दम पर बग़ावत पर उतर आए, सोहबत के अँधेरे में वो दीया बदल गया! ईमान अदब इल्म हया कुछ भी नही क़ायम, मत पूछिए इस दौर में क्या-क्या बदल गया!!!
मेरी दुल्हन सी रातों को, नौलाख सितारों ने लूटा ! नींदें तो लूटीं रूपयों ने, सपना झंकारों ने लूटा !! ससुराल चली जब डोली तो, बारात दुआरे तक आई ! नैहर को लौटी डोली तो, बेदर्द कहारों ने लूटा !!
अपनी मरजी से कहाँ अपने सफर के हम हैं! रुख हवाओं का जिधर का हैं उधर के हम हैं !! चलते रहते हैं कि चलना हैं मुशाफिर का नसीब ! सोचते रहते हैं किस राहे गुजर के हम हैं !! वक़्त के साथ हैं मिट्टी का सफर सदियो से ! किसको मालूम हैं कहाँ के हैं किधर के हम हैं !!!
ज़माने के तो गम सुलझा रहा हूँ, मगर मैं खुद उलझते जा रहा हूँ ! ये दुनियां कब किसी को मानती हैं, मैं अपने आप को मनवा रहा हूँ !! ये क्या दिन आ गए हैं जिंदगी में, मैं अपने आप से ऊबता रहा हूँ ! ओ धोका दे तो उसकी क्या खता हैं, खता मेरी हैं के धोका खा रहा हूँ !!!
लाओ, वो गिरवी रखी मेरी नींदे वापस कर दो, महोब्बत नहीं दे सकते तो कीमत क्यूँ वसूलते हो
नींद से क्या शिकवा जो आती नहीं रात भर, कसूर तो उस चेहरे का है जो सोने नहीं देता।
आज कल सब कहते हैं मैं बुझा सा रहता हूँ, अगर जलता रहता तो कब का खाक हो जाता।
गमों के साये है और तनहाई है ! बड़ी जानलेवा ये जुदाई है !!
ना आये तुम तो भी मोहब्बत का नशा था हो जाओगे बर्बाद हमने पहले ही कहा था !
Please Login or Sign Up to write your book.