लाओ, वो गिरवी रखी मेरी नींदे वापस कर दो, महोब्बत नहीं दे सकते तो कीमत क्यूँ वसूलते हो
चुपचाप गुज़ार देगें तेरे बिना भी ये ज़िन्दगी, लोगो को सिखा देगें मोहब्बत ऐसे भी होती है।
नींद भी नीलाम हो जाती है बाज़ार -ए- इश्क में ! किसी को भूलकर सो जाना इतना आसान नहीं होता !!
आरजू होनी चाहिए किसी को याद करने की ! लम्हें तो अपने आप ही मिल जाते हैं !! कौन पूछता है पिंजरे में बंद पंछियों को ! याद वही आते हैं, जो उड़ जाते हैं !!!
दुनिया का सबसे अच्छा तोहफा “वक्त” है। क्योंकी, जब आप किसीको अपना वक्त देतें हैँ, तो आप उसे अपनी “जिंदगी” का वह पल देतें हैं, जो कभी लौटकर नहीं आता…
यादों में न ढूंढो हमें, मन में हम बस जायेंगे ! तमन्ना हो अगर मीलने की हाथ रखो दील पर, धड़कनो में हम मील जायेंगे
मधुशाला तेरे नयन , देखत आये चैन । तिरछे नयनो से पिला, क्यो करती बैचेन।। खिडकी खोली आत्म की,पल मे बीती रैन। जो डूबा पाया वही , प्रेम डगर चल चैन।।
मासूम है लहजा उसका और भोली सी सूरत है नाज़ुक बदन तराशा हुआ वो बहुत खूबसूरत है रब ने बनाया है उसको कुछ इसतरह सलीक़े से कायनात बसती है उसमें खुशियों की इनायत है ख़्वाहिशों से आँख भरी है दिल मुहब्बत से भरा हर इक बात दुआ लगती है जैसे कोई इबादत है टूट गए हैं सब पैमाने अदा अंदाज़ मुख़्तलिफ़ है बेहिसाब हुस्न की मल्लिका या कोई क़यामत है बच्चों सी मुस्कान उसकी, बच्चों सी भोली बातें बच्चों सी अठखेलियाँ कुछ बच्चों सी शरारत है किससे मुहब्बत है उसको, किसके मुक़द्दर में है न मालूम दुनिया की बातें वो बस मेरी ज़रुरत है
मिलने आयेंगे हम आपसे ख्वाबों में,ये ज़रा रौशनी के दिये बुझा दीजिए, अब नहीं होता इंतज़ार आपसे मुलाकात का,ज़रा अपनी आँखों के परदे तो गिरा दीजिए ।।
हम उनसे आंखे चार कर न पाए, हमारी चाहत में ओ अपनी हालें बयां कर ना पाएं ! हमें उनसे मोहब्बत थी ये ओ भी जानते थे, पर ना कभी हम बयां कर पाएं ना कभी ओ बयां कर पाएं !!
अगर नाज हैं तो जरूर टूटेगा, आज नहीं तो कल जरूर टूटेगा ! हुस्न का गुरुर हैं ये कुछ लम्हों का, गुरुर किसका रहा है गुरुर टूटेगा !! ये मसवरा हैं कि पत्थर बना के रख दिल को, ये आइना ही रहा तो जरूर टूटेगा !!!
ज़माने के तो गम सुलझा रहा हूँ, मगर मैं खुद उलझते जा रहा हूँ ! ये दुनियां कब किसी को मानती हैं, मैं अपने आप को मनवा रहा हूँ !! ये क्या दिन आ गए हैं जिंदगी में, मैं अपने आप से ऊबता रहा हूँ ! ओ धोका दे तो उसकी क्या खता हैं, खता मेरी हैं के धोका खा रहा हूँ !!!
अपनी मरजी से कहाँ अपने सफर के हम हैं! रुख हवाओं का जिधर का हैं उधर के हम हैं !! चलते रहते हैं कि चलना हैं मुशाफिर का नसीब ! सोचते रहते हैं किस राहे गुजर के हम हैं !! वक़्त के साथ हैं मिट्टी का सफर सदियो से ! किसको मालूम हैं कहाँ के हैं किधर के हम हैं !!!
पसीने की स्याही से जो लिखते हैं अपने इरादों को ! उनके मुक्कदर के पन्ने कभी कोरे नहीं हुआ करते !!
हवा चुरा कर ले गयी थी मेरी गजलों की किताब ! देखो, आसमां पढ़ के रो रहा हैं , और नासमझ जमाना खुश हैं कि बारिश हो रही हैं !!
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